Monday, October 21, 2019

क्षत्रिय घाँची समाज व मोदी बनियो में अंतर

प्रधानमंत्री मोदी जी नही है क्षत्रिय घाँची समाज के

उनका हमारे समाज से कोई सम्बन्ध नही

आपने सही पढ़ा ऊपर की दो पंक्तियों में की मोदी जी का क्षत्रिय घाँची समाज से कोई वास्ता नही है ओर न ही यह मोदी गोत्र अपने क्षत्रिय घाँची समाज की गोत्र है

पिछले 10-12 वर्षो के भीतर अचानक से अपने समाज वालो ने मोदी को अपनी जाति का बताने की होड़ सी मचाकर रखी है और बहुत से समाज बन्धु तो अपनी दादा परदादा की गोत्र लिखना छोड़कर यह मोदी गोत्र भी लिखने लग गये जो कि सरासर उनकी मुर्खता का प्रमाण है
जबकि सबको पता है कि हम क्षत्रियवंशी है व क्षत्रिय वंश 36 वंशो में बंटा हुआ था और उसके बाद चौहान वंश में पुनः 26 अलग अलग खापे/ शाखाये निकली तो बाद में क्षत्रिय वंश में कुल 62 वंश गिने जाने लगे

जो एक दोहे द्वारा उल्लेखित है -

दस रवि से दस चन्द्र से, बारह ऋषिज प्रमाण

चार हुतासन सों भये  , कुल छत्तिस वंश प्रमाण

भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान

चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण

अथार्त -दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय,   दस चन्द्र वंशीय, बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है, बाद में भौमवंश. , नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग- अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का प्रमाण मिलता है।


यह बात सबको ज्ञात है कि हमारा समाज क्षत्रिय राजपुत समाज से बना है और हमारे समाज मे इन्ही 62 वंश की गोत्रो में से 4 वंशो की 13 गोत्र को सम्मिलित कर क्षत्रिय राजपुत घाँची समाज की स्थापना  राजपुत समाज से अलग होकर एक क्षत्रिय समाज की कल्पना की गयी थी जो केवल देवताओं द्वारा पद्धित क्षत्रिय कर्म करने के लिए व जिसमे कोई दहेज प्रथा, टीका प्रथा, विधवा विवाह जैसी रूढ़िवादी प्रथाओं का त्याग आज से 885 वर्षो पूर्व हमारे समाज ने कर के  विक्रम संवत 1191 जयेष्ट शुक्ल पक्ष तृतीया(तीज /3 ) रविवार को राजा कुमारपाल सिंह जी तथा वेलसिंह जी के नेतृत्व में 189 राजपुत सरदारो के  परिवारों को मिलाकर एक छोटी
जनसंख्या वाले तत्कालीन क्षत्रिय राजपुत घाँची व वर्तमान क्षत्रिय घाँची समाज की स्थापना चालुक्य वंश के अहिलनवाड राज्य में हुई और अहिलनवाड राज्य से 1191 में निकलकर विक्रम संवत 1199 तक परमार नरेश विक्रम सिंह के राज्य आबु में रुके जो वेलसिंह जी का भाणेज भी था , वहाँ 1199 में अपने राजदरबार(अहिलनवाड राज्य) के  राजगुरु   रुद्र के छोटे भाई चंच को आबु बुलाकर अपने राजपुत वंशावली को लिखा कर सभी क्षत्रिय सरदारो ने 
तत्कालीन राजपुताना में प्रवेश किया  ओर  में जब विक्रम संवत 1143 में  हमारी मातृभूमि अहिलनवाड की राजा सिद्धराज जयसिंह सौलंकी की मृत्यु के बाद वहाँ की राजगद्दी के वारिस कुमारपाल सिंह जो कि हमारे साथ राजपुताना में आये थे उनको भेजा गया वापस अपनी मातृभूमि के लिए राजपाट संभालने के लिए क्योंकि कुमारपाल सिंह जी राजा जयसिंह के भतीज थे व जयसिंह के कोई संतान नही थी तो कुमारपाल सिंह ने हमारी मातृभूमि अहिलनवाडा की बागडोर संभाली थी

 जब  हमारे समाज व क्षत्रिय इतिहास तथा अपनी मातृभूमि अहिलनवाड़ा के 1000 पुराना इतिहास के साक्ष्यों को देखा जाए तो आपको कही पर भी इस मोदी गोत्र का उल्लेख नहीं मिलता है और न ही यह कोई क्षत्रिय वंश की गोत्र है जबकि यह गोत्र उस समय जैन(बनिया ) व ईरान के सूर्य उपासक धर्म पारसी धर्म में मोदी गोत्र का उल्लेख जरूर मिलता है  तथा हिंदु धर्म मे जैन और साहू तेली जाति में मिलता है जो कि आप हमारे राज्य अहिलनवाडा राज्य के राज्य गैजेट में भी देख सकते है

ओर  रही बात मोदी जी को क्षत्रिय घाँची बताने वालों की तो तुम पहले इतिहास पढ़लो  अपने 7 पीढ़ी का वंशक्रम अपने क्षेत्र में रहने वाले क्षत्रिय घाँची समाज के चारण राव भाट से पता कर लेवे !
फिर किसी दूसरे जाति का गोत्र लिखने से पहले सोचने के बाद विचार करना अपने क्षत्रिय पूर्वजो का जिन्होंने अपने स्वाभिमान के लिए अपनी मातृभूमि त्याग दी थी


प्रधानमंत्री मोदी जी जो कि बनिया वर्ग से सम्बन्ध रखते है महात्मा गांधी जी भी मोदी जी के जाति भाई है यह बनियों के खंबाती, चम्पानेरी, मौर(मोड़) अहमदाबादी आदि बनियो ने तेल  व घी बेचने का व्यापार करने लगे जो बाद में बनिया तेली जाति से पहचाने जाने लगे व उनकी पत्नी साहू तेली जाति की है गुजरात के मुस्लिम व हिंदु तेली (घाँची) लिखते हैं 

राजस्थान के क्षत्रिय घाँची समाज का गुजरात की मोड़/मोद(तेली घाची) जाति जिससे महात्मा गांधी व मोदी आते है उनसे किसी भी प्रकार का रोटी बेटी व भाणे व्यवहार नही है  फिर भी अपने  क्षत्रिय घाँची समाज के कुछ लोग खुद ही साहू तेलियों के समितियों में गुस्से जा रहे है और इन साहू तेलियों से बेटियों की शादियां भी जोधपुर में करने लगे हैं जबकि हमारे क्षत्रिय घाँची समाज का साहू तेलियों से कोई सम्बन्ध नही है


सभी क्षत्रिय घाँची समाज बंधुओं से निवेदन है कि आप सभी अपने पूर्वजो के स्वाभिमान को जिंदा रहने दे हम क्षत्रियवंशी है और यही हमारी पहचान है हमारे क्षत्रिय समाज का किसी भी दूसरी  जाति ( साहू तेली मोदी) से कोई भी प्रकार का संबंध नहीं है यह सब राजनीतिक दलों ने व अपने ही समाज के राजनीतिक दलालो ने अपने फायदे के लिए सार्वजनिक मंचो से अपनी बकवास करके अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए अफवाहों को बढ़ावा देते है ऐसे है अपने ही समाज के राजनीतिक दल्ले जो अपने समाज को भी अपने फायदे के लिए किसी भी शुद्र वर्ण की जाति व शुद्र वर्ण के लोगो को अपने क्षत्रियवंशी समाज का सर्टिफिकेट बाँटते फिरते हैं

हमारा पहचान  हमारा धर्म  - क्षत्रिय धर्म , वर्ण - क्षत्रिय वर्ण , जाति - क्षत्रिय/ रजपूती है यही है हमारी पूरी पहचान हमारे समाज का घाँची शब्द से कोई सीधा संबंध नहीं है ओर न ही इस नाम से कोई जाति थी उल्टा अपने पूर्वजो की एक छोटी गलती की वजह से आज यह घाँची शब्द हमारे समाज की असली पहचान व अपने पूर्वजो की पहचान क्षत्रिय पहचान को निगलने लगा है  इसलिए सभी अपनी क्षत्रिय पहचान बनाये रखें


जय माँ भवानी
जय सोमनाथ

क्षत्रियो का शास्त्र से नाता

शास्त्रों ने #क्षत्रियों को सम्पूर्ण रूप से समाज के प्रति उत्तरदायित्व निश्चित किया है। समाज में उत्पन्न होने वाली हर बुराई, अनाचार व अज्ञान के विरुद्ध लड़ना भी जहां क्षत्रिय का दायित्व के रूप में ही निश्चित किया गया है। तब प्रश्न यह उठता है कि इतने कठिन, जटिल, पुरुषार्थपूर्ण व विवेक सम्मत कार्य को करने के लिए प्रत्येक क्षत्रिय में गुणों का निर्माण कर उसे वास्तविक क्षत्रिय कौन बनाएगा।
      #उपर्युक्त प्रश्न में ही #क्षत्राणी के कर्तव्य का उत्तर समाहित है। क्षत्रिय को विनाश से बचाना उसे दुर्गुणों, अज्ञान व प्रमाद से बचाकर उसे विकासोन्मुख बनाकर उसमें त्याग तपस्या शौर्य पराक्रम उदारता व क्षमाशीलता जैसे गुणों का प्रादुर्भाव करना ही क्षत्राणी का परम कर्तव्य है। #क्षत्राणी सैनिक नहीं है, सैनिकों की जननी है। वह रक्षक नहीं है, रक्षकों का निर्माण करने वाली निर्मात्री है। वह उपदेशक नहीं, ज्ञान का संचार करने वाली विलक्षण शक्ति है। इस दृष्टि से देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि क्षत्राणी का कर्तव्य यह है कि वह अपने घरों में सच्चे क्षत्रिय का निर्माण करें।

#जय_क्षत्राणी 🚩🚩
#जयमाँभवानी🚩🚩

क्षत्रिय जाति बनने की होड़ में सभी जातिया

वर्तमान में सभी जातियों में क्षत्रिय बनने की होड़ -

आज जिस किसी जाति व समाज को देखो हर कोई अपने आप को क्षत्रिय साबित करने की कोशिश करता है चाहे व वैश्य वर्ण की जाति हो या शूद्र वर्ण की व कृषक वर्ग की सब खुद की जाती को क्षत्रिय लिखने व बताने लगते है लेकिन जब उनको पूछा जाता है कि क्षत्रिय यानी राजपुत तो उनके पास कोई जवाब नही होता है बस इतना बोलते है कि नही  केवल क्षत्रिय  ही है हम राजपुत नही,  फिर उनके समाज के राजाओं के नाम व उनकी रियासत के नाम पूछो तो उनको पता ही नही ओर न उनके वंश का नाम पता फिर भी स्वयं घोषित क्षत्रिय बने फिरते हैं
जबकि न उनमे क्षत्रिय संस्कार होते है न  क्षत्रिय वाला काम ओर न क्षत्रिय धर्म का ज्ञान ओर न उसका पालन फिर भी फर्जी क्षत्रिय सभी जातिया बनने में लगी है
यह सभी स्वयं घोषित क्षत्रिय बनने वालो के पास कोई जवाब नही होता तो यह सब हमारे क्षत्रिय/ राजपुत घाँची समाज पर सवाल उठाते हैं कि फिर तुम क्षत्रिय कैसे ओर तुम्हारे कौनसे राजा थे व कोनसी रियासत व वंश था तो उन तथाकथित फर्जी क्षत्रियो को बता दु कि हम क्षत्रिय ही नही अपितु क्षत्रिय राजपुत वंशी है हम तो राजपुत वंशी ही है ओर हम राजपुत घाँची भी लिखते थे और लिखते है हमारी रियासत अहिलनवाडा पाटण व वहाँ के ठिकानेदार , हमारे समाज के राजा मुलराज, भीमदेव , जयसिंह ,कुमारपाल सिंह , कर्णसिंह आदि व  हमारे समाज के वंश सूर्यवंश, चंद्रवंश, अग्निवंश, ऋषिवंश आदि व 13 राजपुत गोत्र 8 कुल के ओर हम सभी क्षत्रिय घाँची क्षत्रिय यानी राजपुत भी पहचान रखते है हम तुम दुसरो की तरह फर्जी क्षत्रिय नही है हमारे तो पूर्वज श्री राम व श्री कृष्ण थे हम उन क्षत्रियो के  वंसज है वैदिक क्षत्रिय है हम, जिनका उल्लेख रामायण महाभारत तथा वेदों में वर्णित है

तुम्हारी तरह स्वयं घोषित  फर्जी क्षत्रिय नही जो कि लोकतंत्र आने के बाद आजादी व संविधान के मौलिक अधिकारों का फायदा उठाकर पर अपनी जाति को क्षत्रिय घोषित कर देना व लोकतंत्र में सभी को अपने नाम के आगे कुछ भी लिखने के अधिकार के नाम पर फर्जी क्षत्रिय , कुँवर ,बन्ना ,बाईसा व सिंह लिख कर अपने आप  को क्षत्रियवंशी व क्षत्रिय राजपुत बताना ऐसे सभी  फर्जी क्षत्रियो के लिए एक शेर - कि
शेर की खाल ओढ़ लेने से गीदड़ कभी शेर नही बन सकता है
               
               और
क्षत्रिय कभी बना नही जा सकता उसके लिए तो क्षत्राणी की कोख से ही जन्म लेना पड़ता है

मेरा सभी क्षत्रिय राजपुत घाँची  समाज के युवाओं से निवेदन है कि हमे अपने क्षत्रिय धर्म को पुनः स्थापित करने की जरूरत है हमारी आने वाली पीढ़ी को अपने राजपुत इतिहास से अवगत कराने की जरूरत है ताकि हम उन तथाकथित फर्जी क्षत्रियो  से  तर्क संगत बहस कर सके

जय माँ भवानी


क्षत्रिय भवानी सेना

क्षत्रिय/राजपुत घाँची समाज

क्षत्रिय घाँची समाज की क्षत्रियत्व व हमारे पूर्वजो की रजपूती पर लगता वर्णसंकरता का लांछन

अरे हम क्षत्रिय घाँची, क्षत्रिय राजपूतो के वंसज है हमारे पूर्वज जिन्होंने अपनी रजपूती स्वाभिमान को लेकर कभी समझौता नहीं किया था
और आज कुछ समाज बन्धु क्षत्रिय राजपुत घाँची वंशज होकर भी खुद के नाम के साथ मोदी लिख  तेलियों की जात में गुस्से जा रहे है कितने शर्म की बात है अपने समाज के संस्थापक राजपुत सरदारो ने क्या यही  सोच कर राजपुत घाँची समाज बनाया था ?  , कि उनके वंसज भविष्य में फेमस होने के लिए निचली शुद्रो  की तेली जाति में घुस कर उन तेलियों की गोत्रे लिख कर उनके रजपूती स्वाभिमान ओर रजपूती को मिटी में मिला देगे कितने शर्म की बात है पूरे क्षत्रिय राजपुत घाँची समाज के स्वभिमानी राजपुत सरदारो के लिए क्या वर्तमान के सभी क्षत्रिय घाँची समाज के लोगों में उन्ही 14 गोत्र के 189 क्षत्रिय राजपुत सरदारो का खून है या किसी वर्णसंकर / मिलावट तो नही कर ली 884 वर्षो के अंतराल में ?

जितने भी स्वाभिमानी क्षत्रिय राजपुत घाँची समाज बंधु है जिनको ऊपर लिखे गए शब्दों से ठेस पहुंची है तो उनसे क्षमा  चाहता है हमे पता कि आज भी बहुत से समाज बन्धु है जिनमे अपने पूर्वजो का क्षत्रिय स्वाभिमान जिंदा है पर यह केवल उन्हीं दोगलो के लिए है जो वर्तमान में अपने नाम के साथ मोदी लिख के भी अपने आप को क्षत्रियवंशी व क्षत्रिय राजपुत घाँची मानते है जबकि मोदी लिखते ही वह क्षत्रिय समाज से बाहर हो चुका होता है फिर उसको अपने आप को क्षत्रिय घाँची कहने का कोई हक नही रह जाता है


जय माँ भवानी
जय राजपूताना
जय क्षत्रिय राजपुत घाँची समाज

क्षत्रिय भवानी युवक संघ क्षत्रिय घाँची समाज का सामाजिक संगठन

क्षत्रिय भवानी युवक संघ ( क्षत्रिय भवानी सेना ) सभी समाज के युवाओं से निवेदन कि इस संगठन का एकमात्र उद्देश्य है कि समाज के लिये धरातल पर समाज में परिवर्तन व विकास से जुड़े कार्य करना  इसलिए वही  क्षत्रिय भवानी सेना में वही जुड़े जो समाज में बदलाव सोशल मीडिया पर ही नही धरातल पर बदलाव लाना चाहते है व दुसरो के भरोसे रहने की बजाय खुद समाज मे परिवर्तन लाने को तैयार हो


सभी 5 संभाग जोधपुर , जालोर, सिरोही, पाली , भीनमाल,सुमेरपुर, बालोतरा, बाली, सांचौर  सभी जगह के क्षत्रिय घाँची समाज के युवाओं से निवेदन है कि आप इस संगठन से जुड़े ताकि हमारे समाज के क्षेत्रवाद तक समिति रहने की बजाय सभी जगह से जुड़ सके व अपने समाज के ऐसे मुद्दे उठा सके व परिवर्तन ला सके जिसमे सभी क्षेत्रों में रहने वाले समाज बंधुओ को लाभ मिल सके

क्षत्रिय भवानी सेना का नाम क्षत्रिय भवानी युवक संघ इसलिए बदला गया है ताकि अपने संगठन का रजिस्ट्रेशन करवाया जा सके क्योंकि सेना नाम से सरकार रजिस्टर्ड नही कर रही है तो हमने क्षत्रिय भवानी युवक संघ नाम कर दिया है ताकि अपने संगठन का रजिस्ट्रेशन हो सके जिसके माध्यम से हम बदलाव ला सके

अपने संगठन का नाम चाहे कुछ भी हो पर अपना लक्ष्य निर्धारित होगा समाज मे 
1 शिक्षा के क्षेत्र में तरक्की     
 2 रूढ़िवादी प्रथाओं का त्याग    3 समाज मे विवाह सम्बंधित परेशानियों का समाधान
4 शादियों में ड्रेस कोड
5 वर्तमान में समाज का सरकारी नौकरियो में समाज के युवाओं की उपस्थिति

 आप भी अपने सुझाव दे सकते है

अपने संगठन का पहला व मुख्य उद्देश्य होगा जयपुर में 2020 से पहले समाज का सभी आधुनिक सुविधाओं युक्त  छात्रावास जिसका नाम राजा कुमारपाल सिंह सौलंकी क्षत्रिय घाँची समाज छात्रावास होगा जिसमे रहकर अपने समाज के विद्यार्थी कॉम्पिटिशन एग्जाम की तैयारी कर सके जिसमे आर्थिक स्थिति से कमजोर समाज बंधु भी रहकर तैयारी कर के सके जो होस्टलों की भारी भरकम फीस नहीं भर सकते है हो सकता है कल आप का छोटा भाई या आपका बेटा भी जाकर इसमें रह सके व समाज के लोग जो जयपुर हॉस्पिटल में दिखाने जाते हो तो वो भी रात्रि विश्राम कर सके


आप सभी से निवेदन है कि आप सभी भाई जो भी जुड़ना चाहते हो वो अवश्य जुड़े आपको यह शंका न रहे कि आपसे कोई बहुत सारा पैसा मांगा जाएगा आप सिर्फ अपना थोड़ा सा अमूल्य समय देना है व तन मन से सहयोग

एक बार आप इस संगठन से जुड़कर स्वयं बदलाव के भागीदार बने बजाय दुसरो के भरोसे कि कोई आएगा और क्षत्रिय घाँची समाज को बदल देगा ऐसा कोई नही आएगा आपको ओर हमको मिलकर ही बदलाव लाना होगा


जय माँ भवानी
जय क्षत्रिय भवानी युवक संघ

क्षत्रिय घाँची समाज के संस्थापक राजपुत राजवंश की वंशावली

क्षत्रिय घाँची अंगीकृत पूर्व क्षत्रिय राजपुत वंशावली व इतिहास अथवा अंगीकृत राजपुत घाँची समाज के राजाओं की वंशावली इतिहास

गुजरात के चालुक्य नरेश कर्ण और मयणल्लदेवी का पुत्र जयसिंह सिद्धराज (1094-1143 ई) कई अर्थों में उस वंश का सर्वश्रेष्ठ सम्राट् था। सिद्धराज उसका विरुद था। उसका जन्म 1094 ई. में हुआ था। पिता की मृत्यु के समय वह अल्पवयस्क था अतएव उसकी माता मयणल्लदेवी ने कई वर्षों तक अभिभाविका के रूप में शासन किया था। वयस्क होने और शासनसूत्र सँभालने के पश्चात् जयसिंह ने अपना ध्यान समीपवर्ती राज्यों की विजय की ओर दिया। अनेक युद्धों के अनंतर ही वह सौराष्ट्र के आभीर शासक नवघण अथवा खंगार को पराजित कर सका। विजित प्रदेश के शासन के लिए उसने सज्जन नाम के अधिकारी को प्रांतपाल नियुक्त किया किंतु संभवत: जयसिंह का अधिकार चिरस्थायी नहीं हो पाया। जयसिंह ने चालुक्यों के पुराने शत्रु नाडोल के चाहमान वंश के आशाराज को अधीनता स्वीकार करने और सामंत के रूप में शासन करने के लिए बाध्य किया। उसने उत्तर में शाकंभरी के चाहमान राज्य पर भी आक्रमण किया और उसकी राजधानी पर अधिकार कर लिया। किंतु एक कुशलनीतिज्ञ के समान उसने अपने पक्ष को शक्तिशाली बनाने के लिए अपनी पुत्री का विवाह चाहमान नरेश अर्णोराज के साथ कर दिया और अर्णोराज को सामंत के रूप में शासन करने दिया। मालव के परमार नरेश नरवर्मन् के विरुद्ध उसे आशाराज और अर्णोराज से सहायता प्राप्त हुई थी। दीर्घकालीन युद्ध के पश्चात् नरवर्मन् बंदी हुआ लेकिन जयसिंह ने बाद में उसे मुक्त कर दिया। नरवर्मन् के पुत्र यशोवर्मन् ने भी युद्ध को चालू रखा। अंत में विजय फिर भी जयसिंह की ही हुई। बंदी यशोवर्मन् को कुछ समय तक कारागार में रहना पड़ा। इस विजय के उपलक्ष में जयसिंह ने अवंतिनाथ का विरुद धारण किया और अंवतिमंडल के शासन के लिए महादेव को नियुक्त किया। किंतु जयसिंह के राज्यकाल के अंतिम वर्षों में यशोवर्मन् के पुत्र जयवर्मन् ने मालवा राज्य के कुछ भाग को स्वतंत्र कर लिया था। जयसिंह ने भिनमाल के परमारवंशीय सोमेश्वर को अपने राज्य के कुछ भाग को स्वतंत्र कर लिया था। जयसिह ने भिनमाल के परमारवंशीय सोमेश्वर को अपने राज्य पर पुनः अधिकार प्राप्त करने में सहायता की थी और संभवत: उसके साथ पूर्वी पंजाब पर आक्रमण किया था। जयसिंह को चंदेल नरेश मदनवर्मन् के विरुद्ध कोई उल्लेखनीय सफलता नहीं प्राप्त हो सकी। संभवत: मालव में मदनवर्मन् की सफलताओं से आशांकित होकर ही उसने त्रिपुरी के कलचुरि और गहड़वालों से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए। कल्याण के पश्चिमी चालुक्य वंश के विक्रमादित्य षष्ठ ने नर्मदा के उत्तर में और लाट तथा गुर्जर पर कई विजयों का उल्लेख किय है। किंतु ये क्षणिक अभियान मात्र रहे होंगे और चालुक्य राज्य पर इनका कोई भी प्रभाव नहीं था। अपने एक अभिलेख में जयसिंह ने पेर्मार्दि पर अपनी विजय का उल्लेख किया है किंतु संभावना है कि पराजित नरेश कोई साधारण राजा था, प्रसिद्ध चालुक्य नरेश नहीं। जयसिंह को सिंधुराज पर विजय का भी श्रेय दिया गया है जो सिंध का कोई स्थानीय मुस्लिम सामंत रहा होगा। जयसिंह ने बर्बरक को भी पराजित किया जो संभवत: गुजरात में रहनेवाली किसी अनार्य जाति का व्यक्ति था और सिद्धपुर के साधुओं को त्रास देता था। अपनी विजयों के फलस्वरूप जयसिंह ने चालुक्य साम्राज्य की सीमाओं का जो विस्तार किया वह उस वंश के अन्य किसी भी शासक के समय में सम्भव नहीं हुआ। उत्तर में उसका अधिकार जोधपुर और जयपुर तक तथा पश्चिम में भिलसा तक फैला हुआ था। काठियावाड़ और कच्छ भी उसके राज्य में सम्मिलित थे। जयसिंह पुत्रहीन था। इस कारण उसके जीवन के अंतिम वर्ष दुःखपूर्ण थे। उसकी मृत्यु के बाद सिंहासन उसके पितृव्य क्षेमराज के प्रपौत्र कुमारपाल को मिला। किन्तु क्षेमराज औरस पुत्र नहीं था, इसलिए जयसिंह ने अपने मंत्री उदयन के पुत्र बाहड को अपना दत्तक पुत्र बनाया था। रुद्र महालय मन्दिर के भग्नावशेष अपनी विजयों से अधिक जयसिंह अपने सांस्कृतिक कृत्यों के कारण स्मरणीय है। जयसिंह ने कवियों और विद्वानों को प्रश्रय देकर गुजरात को शिक्षा और साहित्य के केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। इन साहित्यकारों में से रामचंद्र, आचार्य जयमंगल, यशःचन्द्र और वर्धमान के नाम उल्लेखनीय हैं। श्रीपाल को उसने कवीन्द्र की उपाधि दी थी और उसे अपना भाई कहता था। लेकिन इन सभी से अधिक विद्वान् और प्रसिद्ध तथा जयसिंह का विशेष प्रिय और स्नेहपात्र जिसकी बहुमुखी प्रतिभा के कारण अन्य समकालीन विद्वानों का महत्व चमक नहीं पाया, जैन पंडित हेमचंद्र था। अपने व्याकरण ग्रंथ सिद्धहेमचंद्र के द्वारा उसने सिद्धराज का नाम अमर कर दिया है। जयसिह शैवमतावलंबी था। मेरुत्तुंग के अनुसार उसने अपना माता के कहने पर बाहुलोड में यात्रियों से लिया जानेवाला कर समाप्त कर दिया। लेकिन धार्मिक मामले में उसकी नीति उदार और समदर्शी थी। उसके समकालीन अधिकांश विद्वान् जैन थे। किंतु इनको संरक्षण देने में उसका जैनियों के प्रति कोई पक्षपात नहीं था। एक बार उसने ईश्वर और धर्म के विषय में सत्य को जानने के लिए विभिन्न मतों के आचार्यों से पूछा किन्तु अंत में हेमचंद्र के प्रभाव में सदाचार के मार्ग को ही सर्वश्रेष्ठ समझा। इस्लाम के प्रति भी उसकी नीति उदार थी। उसकी सर्वप्रमुख कृति सिद्धपुर में रुद्रमहालय का मंदिर था जो अपने विस्तार के लिय भारत के मंदिरों में प्रसिद्ध है। उसने सहस्रलिंग झील भी निर्मित की और उसके समीप एक कीर्तिस्तम्भ बनवाया। सरस्वती के तटपर उसने दशावतार नारायण का मंदिर भी बनवाया था। .

8 संबंधों: भारतीय स्थापत्यकला, मिनलदेवी, रुद्र महालय, सोलंकी वंश, हेमचन्द्राचार्य, जयसिंह, जयसिंह (बहुविकल्पी), वीर मेघमाया।

भारतीय स्थापत्यकला

सांची का स्तूप अजन्ता गुफा २६ का चैत्य भारत के स्थापत्य की जड़ें यहाँ के इतिहास, दर्शन एवं संस्कृति में निहित हैं। भारत की वास्तुकला यहाँ की परम्परागत एवं बाहरी प्रभावों का मिश्रण है। भारतीय वास्तु की विशेषता यहाँ की दीवारों के उत्कृष्ट और प्रचुर अलंकरण में है। भित्तिचित्रों और मूर्तियों की योजना, जिसमें अलंकरण के अतिरिक्त अपने विषय के गंभीर भाव भी व्यक्त होते हैं, भवन को बाहर से कभी कभी पूर्णतया लपेट लेती है। इनमें वास्तु का जीवन से संबंध क्या, वास्तव में आध्यात्मिक जीवन ही अंकित है। न्यूनाधिक उभार में उत्कीर्ण अपने अलौकिक कृत्यों में लगे हुए देश भर के देवी देवता, तथा युगों पुराना पौराणिक गाथाएँ, मूर्तिकला को प्रतीक बनाकर दर्शकों के सम्मुख अत्यंत रोचक कथाओं और मनोहर चित्रों की एक पुस्तक सी खोल देती हैं। 'वास्तु' शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'वस्' धातु से हुई है जिसका अर्थ 'बसना' होता है। चूंकि बसने के लिये भवन की आवश्यकता होती है अतः 'वास्तु' का अर्थ 'रहने हेतु भवन' है। 'वस्' धातु से ही वास, आवास, निवास, बसति, बस्ती आदि शब्द बने हैं। .
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मिनलदेवी

मिनलदेवी गुजरात के राजा कर्णदेव सोलंकी की पत्नी थी। कर्णदेव की मृत्यु पश्चात वह वारिस बालक सिद्धराज की तरफ से गुजरात का शासन कुछ समय के लिए किया। श्रेणी:गुजरात का इतिहास.
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रुद्र महालय

रुद्रमहालय (अर्थ: रुद्र का विशाल घर) गुजरात के पाटण जिले के सिद्धपुर में स्थित एक ध्वस्त मन्दिर परिसर है। इसका निर्माण ९४३ ई में मूलराज ने आरम्भ कराया था तथा ११४० ई में जयसिंह सिद्धराज ने इसे पूरा कराया। इस मन्दिर को पहले अलाउद्दीन खिलजी ने तोड़ा तथा बाद में अहमद शाह प्रथम ने। श्रेणी:भारत के प्राचीन मंदिर.
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सोलंकी वंश

सोलंकी वंश मध्यकालीन भारत का एक गुर्जर राजपूत राजवंश था। सोलंकी का अधिकार पाटन और कठियावाड़ राज्यों तक था। ये ९वीं शताब्दी से १३वीं शताब्दी तक शासन करते रहे।इन्हे गुजरात का चालुक्य भी कहा जाता था। यह लोग मूलत: सूर्यवंशी व्रात्य क्षत्रिय हैं और दक्षिणापथ के हैं परन्तु जैन मुनियों के प्रभाव से यह लोग जैन संप्रदाय में जुड़ गए। उसके पश्चात भारत सम्राट अशोकवर्धन मौर्य के समय में कान्य कुब्ज के ब्राह्मणो ने ईन्हे पून: वैदिकों में सम्मिलित किया(अर्बुद प्रादुर्भूत)।। १३वीं और १४वीं शताब्दी की चारणकथाओं में गुजरात के चालुक्यों का सोलंकियों के रूप में वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि इस वंश का संस्थापक आबू पर्वत पर एक अग्निकुंड से उत्पन्न हुआ था। यह वंश, गुर्जर प्रतिहार, परमार और चहमाण सभी अग्निकुल के सदस्य थे। अपने पुरालेखों के आधार पर चौलुक्य यह दावा करते हैं कि वे ब्रह्मा के चुलुक (करतल) से उत्पन्न हुए थे, और इसी कारण उन्हें यह नाम (चौलुक्य) मिला। प्राचीन परंपराओं में ऐसा लगता है कि चौलुक्य मूल रूप से कन्नौज के कल्याणकटक नामक स्थान में रहते थे और वहीं से वे गुजरात जाकर बस गए। इस परिवार की चार शाखाएँ अब तक ज्ञात हैं। इनमें से सबसे प्राचीन मत्तमयूर (मध्यभारत) में नवीं शताब्दी के चतुर्थांश में शासन करती थी। अन्य तीन गुजरात और लाट में शासन करती थीं। इन चार शाखाओं में सबसे महत्वपूर्ण वह शाखा थी जो सारस्वत मंडल में अणहिलपत्तन (वर्तमान गुजरात के पाटन) को राजधानी बनाकर शासन करती थी। इस वंश का सबसे प्राचीन ज्ञात राजा मूलराज है। उसने ९४२ ईस्वी में चापों को परास्त कर सारस्वतमंडल में अपनी प्रभुता कायम की। मूलराज ने सौराष्ट्र और कच्छ के शासकों को पराजित करके, उनके प्रदेश अपने राज्य में मिला लिए, किंतु उसे अपने प्रदेश की रक्षा के लिए, शाकंभरी के चहमाणों, लाट के चौलुक्यों, मालव के परमारों और त्रिपुरी के कलचुरियों से युद्ध करने पड़े। इस वंश का दूसरा शासक भीम प्रथम है, जो १०२२ में सिंहासन पर बैठा। इस राजा के शासन के प्रारंभिक काल में महमूद गजनवी ने १०२५ में अणहिलपत्तन को ध्वंस कर दिया और सोमनाथ के मंदिर को लूट लिया। महमूद गजनवी के चौलुक्यों के राज्य से लौटने के कुछ समय पश्चात् ही, भीम ने आबू पर्वत और भीनमाल को जीत लिया और दक्षिण मारवाड़ के चाहमानों से लड़ा। ११वीं शताब्दी के मध्यभाग में उसने कलचुरि कर्ण से संधि करके परमारों को पराजित कर दिया और कुछ काल के लिए मालव पर अधिकार कर लिया। भीम के पुत्र और उत्तराधिकारी कर्ण ने कर्णाटवालों से संधि कर ली और मालव पर आक्रमण करके उसके शासक परमार जयसिंह को मार डाला, किंतु परमार उदयादित्य से हार खा गया। कर्ण का बेटा और उत्तराधिकारी जयसिंह सिद्धराज इस वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक था। ११वीं शताब्दी के पूर्वार्ध से चौलुक्यों का राज्य गुर्जर कहलाता था। जयसिंह शाकंभरी और दक्षिण मारवाड़ के चहमाणी, मालव के परमारों, बुंदेलखंड के चंदेलों और दक्षिण के चौलुक्यों से सफलतापूर्वक लड़ा। उसके उत्तराधिकारी कुमारपाल ने, शांकभरी के चहमाणों, मालव नरेश वल्लाल और कोंकण नरेश मल्लिकार्जुन से युद्ध किया। वह महान् जैनधर्म शिक्षक हेमचंद्र के प्रभाव में आया। उसके उत्तराधिकारी अजयपाल ने भी शार्कभरी के चाहमानों और मेवाड़ के गुहिलों से युद्ध किया, किंतु ११७६ में अपने द्वारपाल के हाथों मारा गया। उसके पुत्र और उत्तराधिकारी मूलराज द्वितीय के शासनकाल में मुइजउद्दीन मुहम्मद गोरी ने ११७८ में गुजरात पर आक्रमण किया, किंतु चौलुक्यों ने उसे असफल कर दिया। मूलराज द्वितीय का उत्तराधिकार उसके छोटे भाई भीम द्वितीय ने सँभाला जो एक शक्तिहीन शासक था। इस काल में प्रांतीय शासकों और सांमतों ने स्वतंत्रता के लिए सिर उठाया किंतु बघेलवंशी सरदार, जो राजा के मंत्री थे, उनपर नियंत्रण रखने में सफल हुए। फिर भी उनमें से जयसिंह नामक एक व्यक्ति को कुछ काल तक सिंहासन पर बलात् अधिकार करने में सफलता मिली किंतु अंत में उसे भीम द्वितीय के सम्मुख झुकना पड़ा। चौलुक्य वंश से संबंधित बघेलों ने इस काल में गुजरात की विदेशी आक्रमणों से रक्षा की, और उस प्रदेश के वास्तविक शासक बन बैठे। भीम द्वितीय के बाद दूसरा त्रिभुवनपाल हुआ, जो इस वंश का अंतिम ज्ञात राजा है। यह १२४२ में शासन कर रहा था। चौलुक्यों की इस शाखा के पतन के पश्चात् बघेलों का अधिकार देश पर हो गया। .
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हेमचन्द्राचार्य

ताड़पत्र-प्रति पर आधारित '''हेमचन्द्राचार्य''' की छवि आचार्य हेमचन्द्र (1145-1229) महान गुरु, समाज-सुधारक, धर्माचार्य, गणितज्ञ एवं अद्भुत प्रतिभाशाली मनीषी थे। भारतीय चिंतन, साहित्य और साधना के क्षेत्रमें उनका नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। साहित्य, दर्शन, योग, व्याकरण, काव्यशास्त्र, वाड्मयके सभी अंड्गो पर नवीन साहित्यकी सृष्टि तथा नये पंथको आलोकित किया। संस्कृत एवं प्राकृत पर उनका समान अधिकार था। संस्कृत के मध्यकालीन कोशकारों में हेमचंद्र का नाम विशेष महत्व रखता है। वे महापंडित थे और 'कालिकालसर्वज्ञ' कहे जाते थे। वे कवि थे, काव्यशास्त्र के आचार्य थे, योगशास्त्रमर्मज्ञ थे, जैनधर्म और दर्शन के प्रकांड विद्वान् थे, टीकाकार थे और महान कोशकार भी थे। वे जहाँ एक ओर नानाशास्त्रपारंगत आचार्य थे वहीं दूसरी ओर नाना भाषाओं के मर्मज्ञ, उनके व्याकरणकार एवं अनेकभाषाकोशकार भी थे। समस्त गुर्जरभूमिको अहिंसामय बना दिया। आचार्य हेमचंद्र को पाकर गुजरात अज्ञान, धार्मिक रुढियों एवं अंधविश्र्वासों से मुक्त हो कीर्ति का कैलास एवं धर्मका महान केन्द्र बन गया। अनुकूल परिस्थिति में कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र सर्वजनहिताय एवं सर्वापदेशाय पृथ्वी पर अवतरित हुए। १२वीं शताब्दी में पाटलिपुत्र, कान्यकुब्ज, वलभी, उज्जयिनी, काशी इत्यादि समृद्धिशाली नगरों की उदात्त स्वर्णिम परम्परामें गुजरात के अणहिलपुर ने भी गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। .
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जयसिंह

जय सिंह नाम के व्यक्ति.
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जयसिंह (बहुविकल्पी)

कोई विवरण नहीं।
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वीर मेघमाया

वीर मेघमाया गुजरात के पाटण स्थित सरोवर मे पानी आये इसके लिये अपना बलिदान दिया था। गुजरात के धोलका गांव के अपने माता पिता के एक मात्र पुत्र थे ।वीर मेघमाया गुजरात राज्य के धोलका तहेसील के रनोडा गाँव में 12वीं सदी में जन्म हुआ था, तब गुजरात का पाटनगर पाटण था।12 वीं सदी में पाटन राज्य का राजा सिध्धराज सोलंकी था। धोलका गांव सोलंकी वंश के साम्राज्य का एक छोटा गांव था । सिद्धराज सोलंकी के राज मे प्रजा को पीने की पानी की काफी दिक्कते हुआ करती थी, उस समय पाटन राज्य में लगातार तिन साल से बारिश नही हो रही थी। पूरा पाटन पानी सेे तरस रहा था। इस बात से व्यथित होकर महाराज सिद्धराज जयसिंह ने अपनी राजधानी अणहिलपुर पाटण मे एक बडा सरोवर बनाने की इच्छा बनाइ। बडा सरोवर बनाने की मंशा से सिद्धराज जयसिंह ने अपनी राज्य सभा मे अपनी बात को रख्खा जिसे मंत्रीमंडल ने पारित कर दिया। प्रस्ताव के पारित होने के बाद सिद्धराज जयसिंह ने मजदूरो को बुलाकर यह सरोवर बनाने की कारवाइ शुरु की। नये बनने वाले सरोवर का नाम सहस्त्रलिंग सरोवर रखा। उस सरोवर में पानी नही आने की वजह से वीर मेघमाया ने अपना बलिदान दिया। .
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यहां पुनर्निर्देश करता है:

सिद्धराज।



क्षत्रिय राजपुत घाँची समाज इतिहास अहिलनवाडा पाटण

क्षत्रिय घाँची समाज की एकता में मुख्य क्षेत्रवाद की समस्या है

पहले क्षेत्रवाद को छोड़ो कि वो पाली का है और हम जालोर के तो उनसे अपने को क्या करना

दूसरा अपना समाज मोदी राग अलाप बंद करे क्यों बार बार तेलियों को अपने क्षत्रिय समाज के साथ जोड़ रहे हो बंद करो खुद को मोदी तेली लिखना
समाज की सभी समितिया फंक्शन करवाती है तो अपने निमंत्रण पत्रिकाओं पर उस बनिये मोदी तेली को क्षत्रिय घाँची समाज का गौरव लिखना बंद करो वो बनिया तेलियों का गौरव है फिर उसको आप क्यों जबरदस्ती क्षत्रिय समाज मे गुस्सा रहे हो और बात एकता की करते हो जब तक जिसमे शुद्ध रक्त नही होगा उससे समाज एकता की आशा करने का कोई मतलब नही क्योंकि उस वर्णसंकर पैदाइश में शुद्ध क्षत्रिय खून ही नही है तो वो क्षत्रिय एकता की बात कैसे हजम कर लेगा
इसलिए पहले यह mp up से पैसे देकर  की औरतों को लाकर उनको फ़र्ज़ी क्षत्रिय घाँची बनाना व बताना बन्द करो क्योंकि इन mp up की औरतों से पैदा हुई औलाद से सिर्फ रक्त ही अशुद्ध व मिक्स होगा जब इन औलादो को क्षत्रिय घाँची समाज मे विवाह किया जाएगा और यही mp ,up की  की औरतों से  पैदा हुए खुद ही फ़र्ज़ी मोदी बने फिरते हैं क्योंकि इनका तो खून ही मिक्स होता है

पर आप सभी क्षत्रिय घाँची समाज बंधुओं को तो ध्यान रखना चाहिए जो भी समाज की संस्था या समिति चाहे सामुहिक विवाह, स्नेह समारोह , प्रतिभा सम्मान समारोह का आयोजन करती हो वो अपने आमंत्रण पत्रिका पर व बैनर होर्डिंग्स पर बनिया तेली मोदी जी का फोटो लगाकर उन तेली को  अगर क्षत्रिय घाँची समाज का गौरव लिख कर गुणगान करती हो तो ऐसे फंक्शन का विरोध करे ऐसे फंक्शन में नही जावे चाहे वो समाज के नाम पर भी क्यों न आयोजित किया जा रहा हो ऐसे फंक्शन में केवल अपने समाज के राजनीतिक दलों के पार्टीपूत अपनी राजनीतिक पार्टी का एजेंडा क्षत्रिय घाँची समाज के मंचों पर थोपते है और वहाँ बार बार चिलाते रहते है कि मोदी मोदी  अरे भाई आप क्षत्रिय घाँची समाज के मंच पर खड़े हो तो उस बनिया तेली का बखान वहाँ क्यों करते हो इतना शौक है तो राजनीति के मंच पर जाकर चिल्लाने लगो जाकर या फिर किसी साहू तेलियों के फंक्शन में जाकर वह मोदी मोदी चिलाओ तो आपको इनाम मिलेगा
पर यहाँ क्षत्रिय घाँची समाज के मंचो पर अपनी दोगली राजनीतिक भक्ति बन्द रखा करो और किसी बनिये मोदी तेली को को क्षत्रिय घाँची समाज का फ़र्ज़ी गौरव घोषित करना बंद करो चाहे वो देश का प्रधानमंत्री ही क्यों न हो हमारे लिए राजनीतिक से पहले केवल अपना समाज है फिर परिवार और धर्म और बाद में कोई राजनीतिक दल इसलिए सभी क्षत्रिय घाँची समाज के राजनीतिक में सक्रिय लोग अपने राजनीतिक दल की दलाली बंद करो


जय माँ भवानी

जय क्षात्र-धर्म

 क्षत्रिय राजपुत घाँची समाज

सोमनाथ महादेव क्षत्रिय घाँची सरदारो के इष्टदेव क्षत्रिय/राजपुत घाँची सरदार

क्षत्रिय घाँची समाज का सोमनाथ महादेव जो कि उनके पूर्वज राजपुत सरदारो के इष्टदेव भी थे जिनको उनके पूर्वज जब 800 वर्ष पूर्व अहिलनवाड़ा में रहते थे तब सभी राजपुत सोमनाथ से खास लगाव रखते थे


पाली में स्थित सोमनाथ मंदिर के निर्माण में क्षत्रिय घाँची समाज के राजा कुमारपालसिंह ने  जब अपना राज्य विस्तार जैसलमेर तक किया था तब उन्होंने तत्कालीन पाली में अपने भाई बंधुओ क्षत्रिय घाँची समाज के लिए अपने इष्टदेव सोमनाथ महादेव मंदिर निर्माण अपने राजकोषीय व्यय से क्षत्रिय घाँची सरदारो को देकर करवाया था
ताकि उनके क्षत्रिय घाँची सरदार यहाँ रहते हुए भी अपने इष्टदेव सोमनाथ महादेव की स्तुति कर सके और इस घटना का उल्लेख इतिहास में भी मिलता है

लेकिन वर्तमान में अपना क्षत्रिय घाँची समाज अपने इष्टदेव  सोमनाथ महादेव को भूल गया है और पाली के सोमनाथ मंदिर की रख रखाव में योगदान देना बंद कर दिया है ओर सोमनाथ महादेव की पूजा भी करनी बन्द कर दी है जबकि जैसे मेवाड़ राजपरिवार के लिए एकलिंग जी इष्टदेव है उसी प्रकार अहिलनवाड़ा के क्षत्रिय घाँची  व दूसरे वहाँ के सभी राजपूतो के लिये सोमनाथ महादेव इष्टदेवता थे !

गुजरात में स्थित सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण भी अपने समाज के राजा कर्णदेव ने शुरू करवाया था जिसका निर्माण कार्य जयसिंह ने जारी रखा व पूर्ण निर्माण क्षत्रिय घाँची समाज के संस्थापक कुमारपालसिंह के शासन में हुआ


सभी क्षत्रिय समाज बन्धु अपनी ओर से  जहाँ भी अपने इष्टदेव सोमनाथ महादेव का मंदिर हो वहाँ सहयोग करे प्रशासन के भरोसे न रहे 🙏🏻⚔

जय सोमनाथ महादेव

Friday, October 18, 2019

क्षत्रिय वंशावली क्षत्रिय (घाँची) समाज

क्षत्रिय अथार्त  क्षत्रिय  राजन्य राजपुत्र/राजपुत

हिन्दु  क्षत्रिय /राजपुत  घाँची समाज

सभी क्षत्रिय घाँची समाज के भाइयो आप भी जाने की क्षत्रिय कौन होता है क्षत्रिय क्या है ? हम क्षत्रिय घाँची क्यों लिखते है

क्षत्रिय का मतलब क्षति से जो समाज की रक्षा करे वो क्षत्रिय

गीता में क्षत्रियो के  लिए  कहा  गया  है :-

शौर्यंतेजा धृतिर्दाक्ष्यं युद्वे चाप्यपलायनम्।
दानमीश्वरभाववश्रच् क्षात्रं कर्म स्वभावजम्।।

शूरवीरता, तेज, धैर्य, चतुरता और युद्ध में से न भागना, दान देना और स्वाभिमान - ये सब के सब ही क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं ।।


क्षत्रिय वंश की शाखाएं (kshatriya clans/branches)

दस रवि से दस चन्द्र से, बारह ऋषिज प्रमाण

चार हुतासन सों भये  , कुल छत्तिस वंश प्रमाण

भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान

चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण.”

अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय,   दस चन्द्र वंशीय, बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है, बाद में भौमवंश. , नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग- अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का प्रमाण मिलता है


ब्राह्मण गौ अबला नार चौथा बाल अनाथ , ते कारण युद्ध लड़े सच्चा क्षत्रिय जाण

क्षत्रिय के शाब्दिक अपभ्रंश जो विभिन्न काल खण्डों में परिभाषित हुए क्षत्रिय राजन्य राजपुत्र/राजपुत

क्षत्रिय, क्षत्रिय वही है जिनके पास श्री राम व श्री कृष्ण से जुड़ी वंशावली आज भी उपलब्ध हो  या उनके चारणो ही बहियों में लिखी  पड़ी है यानी शुद्ध वैदिक क्षत्रिय वही  जिनका वर्णन वेदों में भी मिलता है ओर उन वैदिक क्षत्रियो से उनका जुड़ाव व वंशावली उपलब्ध हो

सूर्यवंशी क्षत्रियो की दस शाखायें:-

१. कछवाह २. राठौड३. बडगूजर
४. सिकरवार५. सिसोदिया ६.गहलोत७.गौर ८.गहलबार
९.रेकबार१०.जुनने

चंद्रवंशी क्षत्रियो की दस शाखायें:-

१.जादौन २.भाटी ३.तोमर ४.चन्देल ५.छोंकर ६.होंड ७.पुण्डीर ८.कटैरिया ९.स्वांगवंश १०.बैस, दहिया

अग्निवंशी क्षत्रियो की चार शाखायें:-

१.चौहान २.सोलंकी ३.परिहार
४.परमार.

ऋषिवंशी क्षत्रियो की बारह शाखायें:-

१.सेंगर २.दीक्षित ३.दायमा ४.गौतम ५.अनवार (राजा जनक के वंशज) ६.विसेन ७.करछुल ८.हय ९.अबकू तबकू १०.कठोक्स ११.द्लेला १२.बुन्देला


चौहान वंश क्षत्रियो की चौबीस शाखायें:-

१.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा
४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा
७.मेलवाल ८.भदौरिया ९.निर्वाण
१०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा
१३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा
१७.रूसिया १८.चांदा १९.निकूम
२०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा
२४.बनकर.

इसतरह क्षत्रिय वंश की 62 शाखायें / गौत्र है जिनकी पुनः उपगोत्र भी बाद में बनी है