क्षत्रिय लाठेचा सरदारो(क्षत्रिय घाँची समाज) आँखे खोलो
क्षत्रिय लाठेचा सिरदारो को जय भवानी hkm🙏
पहले सभी जाकर सही इतिहास पढ़ो फिर अपने क्षत्रिय लाठेचा समाज के साथ किसी दूसरी जाति की तुलना करना
किस आधार पर तेली तंबोलियो को तुम क्षत्रिय लाठेचा समाज वाले भाई बता रहे हो अरे इन्हीं धोखेबाज तेलियों की वजह से तुम्हारे पूर्वज स्वाभिमानी 189 सिरदार13 गोत्रो के क्षत्रिय राजपुत सिरदारो को अपनी रजपूती पहचान अपनी मातृभूमि छोड़नी पड़ी
आज से 850 से अधिक वर्षो पूर्व तुम्हारे पूर्वजो क्षत्रिय राजपुत सिरदारो ने राजा जयसिंह को वचन दिया था ओर शाख भरी थी इन तेलियों ( साहू मोढ़/मोदी गनिगा राठौड़ , चंपनेरी ,खंभाति , अहमदाबादी ) की शाख(गारण्टी) भरी की यह सब तेली वापस आ जायेंगे अपनी बेटियों का विवाह सम्पन करवाकर , परन्तु जब महीना बीत जाने के बाद में कोई भी तेली वापस नही आया अहिलवाड़ा पाटण में तब राजा जयसिंह ने वचन देकर शाख भरने वाले उन 189 राजपुत सिरदारो के मुख्या कुमरपाल सिंह व ठाकुर वेलसिंह भाटी को बुलाकर कहा कि आप लोगो ने उन उन तेलियों के वापस आने का वचन दिया है और क्षत्रियो के वचन के लिए इतिहास गवाह है कि रघुकुल रीति सदा चली आयी , प्राण जाए पर वचन नही इसलिए आप सभी राजपुत अपने वचन का पालन करे तब उन 189 राजपूतो(क्षत्रिय घाँची) ने अपने मुख्या कुमरपालसिंह व वेलसिंह के नेतृत्व में अपनी दास दासियों द्वारा काम पूरा करवाकर वचन का पालन किया और सोमनाथ मंदिर के निर्माण पचात जब दूसरे राजपूतो ने उन 13 गोत्री राजपूतो को तुकारो देने पर राजा जयसिंह द्वारा कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नही करने पर कुमारपाल सिंह व वेलसिंह भाटी ने कहा कि भरे राजदरबार में राजपूतो द्वारा ही राजपूतो को तुकारो देने के बावजूद महाराज कुछ नही बोले तो हमे ऐसे राज्य और ऐसी रियासत में ही नही रहना जहाँ क्षत्रिय धर्म के विमुख हो जाये और गधे के आकार की मूर्ति को अहिलवाड़ा पाटण में जमीन में गाड़ कर यह कह कर निकल गए कि हम ऐसे जगह पर जाएंगे जहाँ क्षत्रिय राजपूतो का सम्मान हो और क्षत्रिय धर्म और क्षत्रिय कर्म करेंगे
इसलिए सभी क्षत्रिय लाठेचा सिरदारो से निवेदन है कि आप अपने पूर्वजो को धोखा देने वाले तेलियों (साहू मोदी गनिगा राठौर गनिगा गंदला ) को अपने साथ जोड़कर उनको अपना भाई मान रहे हो हमारे समाज के संस्थापक उन 13 गोत्री राजपुत सिरदारो को स्वर्ग में बैठे बैठे बहुत दुख हो रहा होगा कल्पना करो , कि हमने जिस तेली जाति के कारण अपना स्वाभिमान अपनी मातृभूमि छोड़नी पड़ी थी , और आज हमारी ही औलाद उनके साथ साठगाँठ ,समझौता कर रही है उनको स्वर्ग से बैठे बैठे तुम पर घिन आ रही होगी की कैसी नकारा संताने उनके ही वंश में पैदा हो गयी आज
इसलिए जब भी अपना जमीर मर जाये अपने स्वाभिमानी क्षत्रिय राजपुत पूर्वजो को याद कर लेना जिन्होंने अपने वचन के कारण अपनी मातृभूमि छोड़कर आ गये थे पर अपने क्षत्रिय राजपुत धर्म को नही भूले थे
पहले सभी जाकर सही इतिहास पढ़ो फिर अपने क्षत्रिय लाठेचा समाज के साथ किसी दूसरी जाति की तुलना करना
किस आधार पर तेली तंबोलियो को तुम क्षत्रिय लाठेचा समाज वाले भाई बता रहे हो अरे इन्हीं धोखेबाज तेलियों की वजह से तुम्हारे पूर्वज स्वाभिमानी 189 सिरदार13 गोत्रो के क्षत्रिय राजपुत सिरदारो को अपनी रजपूती पहचान अपनी मातृभूमि छोड़नी पड़ी
आज से 850 से अधिक वर्षो पूर्व तुम्हारे पूर्वजो क्षत्रिय राजपुत सिरदारो ने राजा जयसिंह को वचन दिया था ओर शाख भरी थी इन तेलियों ( साहू मोढ़/मोदी गनिगा राठौड़ , चंपनेरी ,खंभाति , अहमदाबादी ) की शाख(गारण्टी) भरी की यह सब तेली वापस आ जायेंगे अपनी बेटियों का विवाह सम्पन करवाकर , परन्तु जब महीना बीत जाने के बाद में कोई भी तेली वापस नही आया अहिलवाड़ा पाटण में तब राजा जयसिंह ने वचन देकर शाख भरने वाले उन 189 राजपुत सिरदारो के मुख्या कुमरपाल सिंह व ठाकुर वेलसिंह भाटी को बुलाकर कहा कि आप लोगो ने उन उन तेलियों के वापस आने का वचन दिया है और क्षत्रियो के वचन के लिए इतिहास गवाह है कि रघुकुल रीति सदा चली आयी , प्राण जाए पर वचन नही इसलिए आप सभी राजपुत अपने वचन का पालन करे तब उन 189 राजपूतो(क्षत्रिय घाँची) ने अपने मुख्या कुमरपालसिंह व वेलसिंह के नेतृत्व में अपनी दास दासियों द्वारा काम पूरा करवाकर वचन का पालन किया और सोमनाथ मंदिर के निर्माण पचात जब दूसरे राजपूतो ने उन 13 गोत्री राजपूतो को तुकारो देने पर राजा जयसिंह द्वारा कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नही करने पर कुमारपाल सिंह व वेलसिंह भाटी ने कहा कि भरे राजदरबार में राजपूतो द्वारा ही राजपूतो को तुकारो देने के बावजूद महाराज कुछ नही बोले तो हमे ऐसे राज्य और ऐसी रियासत में ही नही रहना जहाँ क्षत्रिय धर्म के विमुख हो जाये और गधे के आकार की मूर्ति को अहिलवाड़ा पाटण में जमीन में गाड़ कर यह कह कर निकल गए कि हम ऐसे जगह पर जाएंगे जहाँ क्षत्रिय राजपूतो का सम्मान हो और क्षत्रिय धर्म और क्षत्रिय कर्म करेंगे
इसलिए सभी क्षत्रिय लाठेचा सिरदारो से निवेदन है कि आप अपने पूर्वजो को धोखा देने वाले तेलियों (साहू मोदी गनिगा राठौर गनिगा गंदला ) को अपने साथ जोड़कर उनको अपना भाई मान रहे हो हमारे समाज के संस्थापक उन 13 गोत्री राजपुत सिरदारो को स्वर्ग में बैठे बैठे बहुत दुख हो रहा होगा कल्पना करो , कि हमने जिस तेली जाति के कारण अपना स्वाभिमान अपनी मातृभूमि छोड़नी पड़ी थी , और आज हमारी ही औलाद उनके साथ साठगाँठ ,समझौता कर रही है उनको स्वर्ग से बैठे बैठे तुम पर घिन आ रही होगी की कैसी नकारा संताने उनके ही वंश में पैदा हो गयी आज
इसलिए जब भी अपना जमीर मर जाये अपने स्वाभिमानी क्षत्रिय राजपुत पूर्वजो को याद कर लेना जिन्होंने अपने वचन के कारण अपनी मातृभूमि छोड़कर आ गये थे पर अपने क्षत्रिय राजपुत धर्म को नही भूले थे
5 Comments:
११६३ के इस ईतिहास को आज सब भुल चुके हैं।
घोडे छोड बैल पकडे। तलवार छोड पराणीया पकडी।
सब दरबारी कार्य त्याग कर खेती करने लगे।
शादि ईत्यादि पर घोडो पर न चढने कि कसमे खाकर आबु कि भुमि पर पग रखा था।
अलग अलग शहर गांव मे बसे।
प्रथम घांची समाज द्वारा सांवलाजी का मंदिर वेलांगरी मे निर्माण करवाया गया।
ऐसे कयी रोचक बातो से समाज अब भी अचुता है।
आपके कॉन्टेक्ट नम्बर देने की कृपा करावे हुकम��
आपको इतिहास को ठीक से पढ़ने की जरूरत है कहाँ लिखा है कि हम क्षत्रियवंशी घोड़े पर नही बैठने की कसमें खाकर निकले थे
तब तो आपको वेलसिंह जी भाटी का वो भी प्रण याद नही होगा कि हमने ढाल तलवार और भाले केवल नीचे रखे हैं चलाना नही भूले है आज भी वही रगों में रजपूती रक्त है और रहेगा
भाई, राठौड़ों या राठौरो को क्यों तेली बोल रहे हो, वो तो क्षत्रिय राजपूत है,
"बोराणा (तंवर)गोत्र की उतपत्ति"
बोराणा गोत्र सुध रूप से तंवर वंस की गोत्र है, तंवर तोमर जो कि पाण्डु पुत्र अर्जुन के वंशज है। क्षत्रिय वंस की शाखा है, राजा अनंगपाल प्रथम के पुत्र बोडाना जिनका मालवा , मारवाड़ ओर देसूरी पर सासन था। अनंगपाल प्रथम के पुत्र बोडाना के नाम से ओर उनके वंस से बोराणा गोत्र की उतपति हुई और धीरे धीरे बोराणा गोत्र के रूप में प्रचलित हो गई । इस तरह ये तंवर राजपुतो की एक शाखा बोराणा बनी । तंवर वंस बोराणा वंस एक ही है। ये सब हमारे राव भाटो की बहियों में लिखा है।
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