Friday, January 31, 2020

क्षत्रिय लाठेचा सिरदारो(क्षत्रिय घाँची) समाज को संदेश

लाठेचा सिरदारो को एक जाग्रति संदेश

उठो क्षत्रियो
किसी समाज की गरिमा उसकी भौतिक उपलब्धियों से नहीं आंकी जाती। वास्तविक सम्पदा तो वहाँ के चरित्रवान एवं आदर्शवादी युवा ही होते हैं। ये ही वास्तव में बहुमूल्य मणि-माणिक्य हैं। सच्ची समृद्धि इसी रत्न राशि की बाहुल्यता पर निर्भर है। सम्पन्नता धन पर आधारित नहीं है, शक्ति का माप आयुधों से नहीं किया जाता,  बड़प्पन क्षेत्रविस्तार या जनसंख्या पर टिका हुआ नहीं है। किसी समाज का गौरव उसके लौह युवा ही होते हैं। स्वामी विवेकानन्द जी का कहना है ''आज हमारे समाज और देश को जिस चीज की आवश्यकता है, वह ऐसे युवाओं की लोहे की मांसपेशियां, फौलाद के स्नायु तथा प्रचण्ड इच्छा शक्ति है जिसका विरोध कोई न कर सके। समाज चाहता है एक नई विद्युत शक्ति, जो समाज की नस-नस में नया जीवन संचार कर दे। काम और कांचन में जकड़े मोहान्ध युवा उपेक्षा की दृष्टि से देखे जाने योग्य हैं।
खोजें जीवन लक्ष्य ! क्योंकि इसके बिना युवा-अवस्था सही राह न खोज पायेगी। यौवन की शक्तियां  यों ही बिखरती, बरबाद होती रहेंगी। ओछे आकर्षण और उनींदे सपनों की कोई उम्र नहीं होती। युवाओं के मन के खजाने में इन्द्रधनुषी सपनों की कमी नहीं है। स्वप्नों को साकार करना ही युवा का एकमेव लक्ष्य हो। लक्ष्य सिद्धि ही जीवन की सार्थकता है। स्वयं के जीवन को धन्य बनाने के साथ समाज की भी प्राथमिकताएं  हैं। समाज के प्रति आस्था, अनुराग होना ही चाहिए। आज पुर्विया क्षत्रिय समाज झूठे अहंकार में जीती है। युवा का समाज के प्रति अनुराग हो, समाज युवा के वक्ष पर धड़कता हो, समाज युवा की नसों में स्पन्दन करता हो, समाज युवा का दिवा स्वप्न हो, समाज उनका निशा कल्प हो। युवा समाज के रक्त-मज्जा से निर्मित शरीर रूप है। वे स्वयं समाज हैं।
आज पुर्विया समाज के युवा को ध्यान होना चाहिए कि हम ऐसे महापुरूषों से सम्बन्ध रखते हैं जिनकी गाथा स्वर्ण अक्षरों से मानव इतिहास में अंकित है। समाज का युवा उस गाथा से अनभिज्ञ है। जब क्षत्रिय युवा यहीं सर्वप्रथम यौवन के मध्यान्ह में, वैभव विलास की गोद में, ऐश्वर्य के शिखर पर और शक्ति के प्राचुर्य में, माया मोह की श्रृंखला तोड़कर मानव कल्याण के लिए जीवन की शेष सांसें समर्पित कर देते थे। आज हमारी समाज का संवेदनशील और शिक्षित युवा  समाज की कुरीति और कुसंस्कारों से संक्रमित समाज में घुटन महसूस करता है। जब वह युवा पढ़कर बाहर जाता है तो वह अपने आपको बौना महसूस करता है। उसके पास समाज का कोई प्रभावशाली परिचय नहीं है। वह अपनी पहचान ठीक से नहीं बना सकता। अत: युवा अपनी समाज की वि’शेषता,  इतिहास और अपने महापुरूषों को नहीं बता सकता। आज का युवा ग्लोबलाईजे’शन और डिजिटल वर्ल्ड का मतलब समझे और नए लोगों में भी अपनी जगह बनाये।
गत एक सहस़्त्र वर्ष तक हम जिस प्रकार परकीय आक्रान्ताओं के शिकार बनते रहे उसका कारण धनाभाव , बलहीनता या सैन्य बल का अभाव नहीं था, वरन् उसका एकमात्र कारण आपसी मतभेद तथा चैतन्य युक्त समाज भावना का अभाव था। पद, प्रतिष्ठा, पैसा और परिवार का भान सामाजिक एकता में बाधक बना और बनता जा रहा है। आज युवा को समझना होगा कि मानवता के महासमर में सुख और दुख, शक्ति और दुर्बलता,  वैभव और दैन्य,  हर्ष और विषाद, अस्मिता और आंसू तथा जीवन और मृत्यु के प्रबल तरंगाघातों के बीच विचलित युवा को कुरूक्षेत्र के मैदान में कृष्ण का संदेश प्रेरणा बना। वही प्रेरणारूपी गीता के गीतों को पुर्विया समाज के युवाओं को हृदयंगम करना है।
अब समाज के युवा को संकल्पित होकर अपने संस्कारों की सुगन्ध से समाज को महकाना है। आज युवा को ऐसे व्यवहार की आव’यकता है -
''जीत ले जग का हृदय जो, आपका वह शील अनुपम।
वज्र को नवनीत कर दे , स्नेह-मय वाणी सुधा सम।।''

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