Thursday, September 12, 2024

क्षत्रिय लाटेचा सरदारो ( क्षत्रिय घाँची समाज ) का इतिहास

 क्षत्रिय लाटेचा राजपूत सरदारो का  ( क्षत्रिय घाँची ) समाज का इतिहास 




 क्षत्रिय वर्ण की  घाँची जाति है जो मूल राजपुत वंशी है थे यह मूल घाँची नही रहे बस घाँची शब्द बाद में अपना लिया क्षत्रिय राजपुत पहचान के साथ , क्षत्रिय घाँची यह राजस्थान में मारवाड़ में जो लाटेचा राजपूत या लाटेचा क्षत्रिय कहलाते थे ये पाटण के ओर लाट प्रदेश के राजपूत थे जो 1191 में रूद्रमन्दिर बनने के दौरान राजपूतों ने राजा के दौरान राजपूतों से राजपुत घाँची बने थे 



रूद्रमन्दिर महाराजा जयसिंह के पूर्वज मूलराज के द्वारा शिव मंदिर जो अधूरा रह गया था उसको जयसिंह ने पूरा करवाने का निर्णय किया तब सिलावटो को बुलाकर मंदिर निर्माण पूरा होने का समय पूछा तो सिलावट 24 वर्ष का बोले तब राजा ने ज्योतिषो को बुलाकर अपनी जीवन की पूछा तो ज्योतिष ने 12 वर्ष शेष बताई तब राजा ने सिलावटो को दिन और रात निर्माण कार्य जारी रख कर 12 वर्ष में पूर्ण करने का आदेश दिया ताकि जयसिंह अपने जीवनकाल में ही यह अपने पुर्वज मूलराज का रुद्रमाहालय मंदिर पूर्ण करवा सके , रात में निर्माण कार्य के लिए रोशनी की जरूरत पड़ती जिसके लिए तेल की आवश्यकता थी तो आस पास के तेलियो को बुलाया गया जो दिन रात घाणी चला तेल की व्यवस्था करते थे इन सिलावट व तेलियो के ऊपर निगरानी के लिए महाराजा सिद्धराज जयसिंह ने 189 राजपूतों को लगाया  जिनके अग्रणी वेलसिह पुत्र बजेसिंह जी थे वेलसिंह जी लोद्रवा के  रावल विजयराज लांझा के साथ पाटण गए थे और वही रह  गए थे  मंदिर निर्माण शुरू हुआ 8 वर्ष बीतने के बाद अचानक तेलियो के पास इकट्ठा हुए धन लूट जाने की चिंता सताने लगी उन्होंने वेलसिंह जी से छुट्टियों की माँग की कि उनके बेटिया बड़ी हो गयी इसलिए वो उनकी शादिया करवाकर लौट आएंगे उनकी इस मांग को वेलसिंह जी ने जयसिंह के पास पहुँचवाई लेकिन महाराजा जयसिंह जी ने मना कर दिया कि अब मंदिर निर्माण का कार्य 4 वर्ष ही शेष रहा है वो पूर्ण हों जाने के बाद में तुम्हारी कन्याओ का विवाह करवा दूंगा लेकिन तेलियो के मन मे अलग ही चल रहा था उन्होंने षड़यंत्र रचकर वहाँ निगरानी में लगे राजपूत सरदारो को भोज का आयोजन रखकर बुलाया और खाने में नशे का मिलाकर उन राजपूतों को खिला दिया जब राजपूत नशे में नींद में चले गए तो तेलियो ने मौका देखकर फ़रार हो गए 

जब दूसरी प्रहर के सरदार आये निगरानी के लिए तो देखा कि रात में जिन सरदारो की वहाँ duty थी वो सब नशे में नीद में थे उनको जगाकर पूछने पर तेलियो के षड्यंत्र से भागने का पता चला जब यह पूरा वर्णन महाराजा जयसिंह जी के पास पहुँचा 


तो उन्होंने निगरानी में लगे उन सरदारो को बुलवाया और कहाँ यह आपकी गलती की वजह से हुआ इसलिए अब आप व्यवस्था करो तेलियो की या आप स्वयं 8 वर्षो से तेल का निकालने का काम निगरानी करते करते देखते रहे हैं इसलिए आप तेल निकालकर मंदिर निर्माण पूर्ण करवाओ यह आज्ञा दे दी 


तब निगरानी में लगे सभी सरदारो ने मना कर दिया कि हम यह काम नही करेंगे वर्ना दूसरे हमे हींन भावना से देखेंगे व राजपूत नही समझेंगे तब राजा ने प्रलोभन देकर कहा तेलियो को एक मोहरा देता था आपको दो मोहर दूंगा लेकिन फिर भी उन राजपूतो ने मना कर दिया तब राजा के भतीज कुन्तपाल ने आगे बढ़कर राजपूतो को कहा चलो में आपके साथ यह काम करूंगा व राजा ने वचन दिया मेरे मन मे ऊंच नीच नही आएगी आप क्षत्रिय हो और क्षत्रिय ही रहोगे  तब वेलसिंह भाटी ने अपने सरदारो को समझाया कि जब कुँवर कुन्तपाल स्वयं यह कार्य अपने साथ करेगे तो फिर ऊंच नीच की बात ही नही उठेगी तब दूसरे सरदारो ने वेलसिंह और कुन्तपाल के पीछे पीछे हामी भर दी,

 लेकिन उन राजपूतो ने कहा हम घाणी के पीछे पीछे घूम नही सकते तो महाराजा जयसिंह ने सुथारों को बुलाकर घाणी के साथ राजपूतो के लिए पाठ बनवाकर बैठने की व्यवस्था करवाई ताकि उन सरदारो को घाणी के पीछे पीछे घूमना न पड़े और महाराजा ने कहा मेरा सिंहासन गज ऊंचा है लेकिन तुम्हारे सिंहासन सवा गज ऊँचा रहेगा  इसप्रकार 4 वर्ष उन राजपूतो ने वेलसिंह और कुन्तपाल के नेतृत्व में मंदिर निर्माण पूर्ण करवाया इसमे उन सरदारो की संख्या कम थी तो इसमें कुछ वैश्य वर्ण के घी तेल का काम करने वाले लोगों ने भी मदद की थी 


जब मंदिर  पूर्ण हुआ और समारोह का आयोजन किया रखा गया जिसमें वो राजपुत सरदार भी आये जिन्होंने घाणी चलाई थी वो आकर बैठे तब तक उनके पास धन भी अधिक इकट्ठा हो गया था राजा ने दुगनी मोहर देने की वजह से तो दूसरे राजपूत ईर्ष्या वश खड़े होकर कह दिया आप आधी मोहरे हमे दे दो या इस धन को आप धर्म पूण्य के कार्य मे खर्च कर दो तब उन राजपूत सरदारो ने मना कर दिया तब दूसरे राजपूतो ने कहा अब आप राजपूत नही रहे घाँची हो गए हो और हम अब आपके साथ बेटी व्यवहार नही करेगे 

जब दूसरे राजपूतो द्वारा इस प्रकार के व्यवहार के कारण वो सरदार महाराजा के पास उनको वचन का याद दिलवाने गए कि आपने वचन दिया था लेकिन उस समय की परिस्थिति ओर दूसरे सरदारो का संख्या प्रभाव अधिक होने के कारण महाराजा ने चुप रहना ही ज्यादा उचित समझा 


तब उन सरदारो ने कहा कि क्षत्रिय के लिए वचन के संदर्भ में रघुकुल रीति सदा चली आयी प्राण जाए पर वचन न जाए लेकिन आप वचन देने के बाद भी मौन हो गए तब उन राजपूतो ने अपने क्षत्रियोचित कर्म को प्रधान रखकर अपने अलग समाज की स्थापना कि जो उस समय राजपूत घाँची नाम से जाने गए उस समय उन राजपुत सरदारो की संख्या क्या थी उसका वर्णन राज दरबार के राज राव ने इसदोहे द्वारा उल्लेख किया है 


【< तवां चालक गुणतीस, बीस खट्‌ प्रमार बखाणु । राठोड़ पच्चीस , बेल बारेह बौराणा ॥ लाभ सोलेह गेहलोत, भाटी उगणीस भणिजे । सात पढिहार सुणोजे ॥ सुदेचा तीन बदव सही , कवि रुद्र कीरत करे । राजरे काज करवारी थू , साख साख जेता सरे ॥ ]]




संवत इग्यारह एकानवे जेठ तीज रविवार !


 भावार्थ -  गुणतिस 29 सौलंकी गोत्र के सरदार ! छब्बीस 26 परमार(पँवार) गोत्र के सरदार !  पच्ची 25 राठौड़ गोत्र के , बीस 20 गहलोत गोत्र के ,20 बोराणा सरदार , 19 भाटी गोत्र के सरदार ! बीस 20 चौहान गोत्र के 7 पढियार गोत्र  के व तीन 3 सुंदेचा (परिहारिया ) तीन भाई सरदार  थे कुल 173 सरदार थे जिसकी कविताए रूद्र करता है । ( रुद्र पाटण के राजदरबार के  राज राव थे )

 विक्रम संवत 1191 में यह स्थापना करके वेलसिंह जी भाटी पद्मसिंह जी परिहार सातलसिंह चौहान अन्य सरदारो के नेतृत्व में अलग समाज की स्थापना रखी  थी 


विक्रम संवत 1199 में गदोतर ( गधे नुमा पत्थर ) डालकर पाटण से आबू में आकर पाटण से राज राव रुद्र के छोटे भाई चंच को बुलाकर अपनी वंशावली लिखवाई जिस समय आठ कुल थे 




उस समय आबू में राजा विक्रम सिंह परमार थे  फिर आबू से मारवाड़ में बस गए 


 

विक्रम संवत 1199 में जब वंशावली लिखवाई तब तक दहिया राजपूत वंश नही था राजपूत घाँचीयो में यह वंश का राव जी  के पोथियों के अनुसार स्थापना के 300 वर्ष बाद जालोर के अंदर दहिया राजपूतो के बीच मे आपसी विवाद के कारणों से कुछ दहिया राजपूत सरदारो ने राजपूत घाँचीयो के अंदर आ गए थे इसके बाद इस वंश गोत्र राजपूत घाँची मे हुई 



Note - हमारी क्षत्रिय घाँची समाज किसी का इतिहास चुराना स्वीकार नहीं किया बस जो जानकारी है वो हमारे पूर्वजो के बारे में जो था वो ही बताया गया है इसमें न कोई कपोल कल्पना है या मनगढ़ंत कुछ नही है जो तत्कालीन इतिहास रावो की पोथियों में वर्णित है केवल वही है इसके अलावा आप रासमाला पुस्तक , चालुक्य वंश रत्नमाला प्रथम संस्करण भाग चतुर्थ से भी देख सकते हो

Sunday, June 4, 2023

भाटी वंश परम्परा एवं इतिहास ..

 #भाटीवंशपरम्पराएवंइतिहास .....


सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा के पुत्र अत्रि और अत्रि के पुत्र चंद्र ... इन्ही चन्द्र से #चंद्रवंश का उदय हुआ ... चन्द्र के बुध और बुध के पुरुरवा ...  पुरुरवा की ही पीढ़ी में ययाति हुए ... ययाति के पुत्र हुए यदु ... यदु से ही #यदुवंश चला  ... यदु के शूरसेन और शूरसेन के वासुदेव और वासुदेव के हुए #श्रीकृष्ण  ... प्रभु श्री कृष्ण से ही यदुवंश की ख्याति हर और बढ़ी एवं यदुवंशी कृष्ण पुत्र कहलाए  ...कृष्ण ही यदुवंशियों के इष्ट देव है ...  यदुवंश से ही गुजरात के #जाडेजा #चुडासमा #रायजादा और #सरवैया राजपुतों का निकास है ... #करौली के जादोनों और #देवगिरी के यादवों का भी निकास यही से माना गया है ... यही यादव आगे चल कर #जाधव कहलाए ... शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई इन्ही जाधावों की बेटी थी ... दक्षिण भारत के भी कुछ प्रमुख राजवंशों का निकास यदुवंशियों से माना गया है ... यदुवंश की जो शाखा भारत के उत्तर - पश्चिम में रही उनमें श्री कृष्ण से बारह पीढ़ी बाद गजबाहु हुए जिन्होंने #गजनी शहर बसाया और वहाँ राज किया ... इन्ही के वंशजों ने #लाहौर को अपनी राजधानी बनाया ... लाहौर का भाटी दरवाजा आज भी पाकिस्तान में भाटियों के गौरव में खड़ा है ... अफगानिस्तान और पंजाब के क्षेत्र में लंबे समय तक इनका राज रहा ... इन्ही में आगे चल कर #शालिवाहनप्रथम हुए उनका साम्राज्य विस्तृत भूभाग में फैला था ... इन्ही के पुत्र #बालबन्ध हुए और बालबन्ध के घर ही #भाटी का जन्म हुआ जो आगे चल कर राजा भाटी कहलाए ... लाहौर के राजा भाटी से ही क्षत्रियों की भाटी शाखा का प्रादुर्भाव हुआ ... राजा भाटी ने #भटनेर बसाया ... राजा केहर ने #केहरोरगढ़ और अपने पुत्र तणु के नाम से #तणोट बसाया और तणोट गढ़ की नींव #माँआवड़ के हाथ से दिलवाई ... तणोट में माँ आवड़ का प्राचीन मंदिर है ... आवड़ ही स्वांगिया है ... स्वांगिया माँ को भाटियों की कुलदेवी माना गया है ... राव तणु के बेटे #विजेरावचूंडाला को माँ स्वांगिया का इष्ट था ... वो बहुत ही बहादुर योद्धा था लेकिन शत्रुओं ने उसे षड्यंत्र से मार दिया और तणोट गढ़ ध्वस्त कर दिया ... #रावतणु भी लड़ते हुए काम आए ... विजेराव का पुत्र #देवराज उस समय छोटा था और पुष्करणा ब्राह्मणों के सहयोग से बच गया ... पुष्करणा भाटियों के राजपुरोहित है ...बाबा रतननाथ जी के आशीर्वाद से देवराज ने #देरावरगढ़ बनाया औऱ भाटियों की सत्ता पुनः स्थापित की ... इसी वंश में आगे चल कर #विजयराजलांजा हुआ जिसे " उत्तर भड़ किवाड़ भाटी " की उपाधि मिली ... जिसका अर्थ होता है " भारत के उत्तरी द्वार के रक्षक भाटी " जिसे भाटी सदियों से सिद्ध करते आए है ... विजयराज के पुत्र #भोजदेव ने चौदह साल की उम्र में गौरी की सेना से मुकाबला किया और वीरगति को प्राप्त हुआ ... भाटियों में कम आयु का यह महान राजा एवं योद्धा था ... भोजदेव के काका जैसलदेव ने #जैसलमेर की नींव रखी और त्रिकुट पहाड़ी पर एक मजबुत दुर्ग बनाया ... जैसलदेव के बाद #शालिवाहनद्वितीय रावल बना शालिवाहन के ही बेटों पोतों ने पंजाब में पटियाला - कपूरथाला - जींद - नाभा - फरीदकोट की रियासतें कायम की ... हिमालय की पहाड़ियों में सिरमोर - नाहन रियासत की स्थापना भी शालिवाहन के ही परिवार ने की ... शालिवाहन के बाद #रावलचाचगदेव हुए ... जिन्होंने उम्र के अंतिम पड़ाव में भी रण में मरणा महल में मरने से बेहतर माना और मुल्तान की सेना को हरा वीरगति को प्राप्त हुए ...  चाचगदेव के बाद #रावलजैतसी जी प्रथम और उनके बेटे #मूलराज व #रतनसी ने भाटियों का मान बढ़ाया ... खिलजी की सेना ने गढ़ को घेर लिया ... क्षत्रिय रण में काम आए और माताओं ने अग्नि स्नान किया ... इसी परम्परा को उनके बाद के #रावलदुदा और #तिलोकसी ने कायम रखा और वीरोचित मार्ग से स्वर्ग सिधारे ... ततपश्चात #रावलघड़सी जी ने जैसलमेर पुनः प्राप्त किया और जैसाण का मान बढ़ाया ... घड़सी के बाद #रावललूणकरण हुए ... आपके समय में अमीर अली ने धोखे से गढ़ को हथियाने का प्रयास किया ... रावल लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए और रानियों ने धारा स्नान किया ... #मालदेव जो लूणकरण का पुत्र था #आलाजीभांणसीहोत के नेतृत्व में भाटियों की सेना भेजी और दुर्ग पुनः हासिल किया व शत्रुओं को दंड दिया ... महारावल अमर सिंह के समय #रोहड़ी पर बलोचों और चनों ने आक्रमण किया ...  सीमा सुरक्षा चौकी पर तैनात भाटियों ने बहादुरी से उनका मुकाबला किया और वीरगति पाई ... क्षत्राणियों ने जौहर किया ... अमर सिंह जी ने रोहड़ी पुनः हासिल की बलोचों एवं चनों को मार भगाया ... जब भाटी राजवंश देश की आजादी के मुहाने पर खड़ा था तब #महारावलगिरधरसिंह जैसा सपूत राजा हुआ जिसने निज हित से प्रजा हित को बड़ा माना और भारत में सम्मिलित होने का निर्णय लिया ... भारत के उत्तरी द्वार के रक्षकों ने पुनः भारत को मजबूती दी ... वर्तमान महारावल चैतन्य राज सिंह जी है जो महारावल ब्रजराज सिंह जी के पुत्र है  ... चन्द्र से शुरू हुआ यह सफर जो यदु और भाटी से होता हुआ चैतन्य राज तक पहुँचा जो गौरव पूर्ण और उज्ज्वल है ... इस उज्ज्वल और गौरव पूर्ण सफर में उन अनगिनत योद्धाओं का त्याग तप और बलिदान छुपा है जो जिये भी वंश के लिए और मरे भी वंश की खातिर ... जिनमें से कुछ नाम हमें याद है और बहुत से गुमनाम भी ... वर्तमान में भाटियों की एक सौ साठ के लगभग शाखाएं एवं उप शाखाएं है जो कुछ तो इतिहास की पुस्तकों में दर्ज है और कुछ अभी केवल बोल चाल में ही प्रयोग होती है ... जैसलमेर रियासत में भाटियों के बहुत से गांव एवं ठिकाणे है ... जैसलमेर से बाहर राजस्थान के अन्य जिलों में भी भाटियों के बहुत से ओहदेदार ठिकाणे एवं गांव है ... गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड , दिल्ली और हरियाणा में भाटियों के बहुत से ठिकाणे और गांव है ... पंजाब और हिमाचल में कुछ रियासतों के साथ बहुत से गांव एवं ठिकाणे है ... भाटियों का फैलाव भाटियों के साहस - संघर्ष और विशाल वंश व्रक्ष की और इशारा करता है ... जो सभी यदुवंशियों और भाटियों के लिए गौरव की बात है


काशी मथुरा प्रयागबड़ गजनी अर भटनेर ...

दिगम दिरावर लुद्रवो नौवोँ जैसलमेर ...


काशी से शुरू हुई यह यात्रा गजनी तक गई और जैसलमेर पहुँची ... कई जुंझार इसे आगे भी ले गए ... भाटियों ने कई विशाल साम्राज्य जीते और हारे भी लेकिन नही हारी तो भाटियों की हिम्मत ... जिसने उन्हें हर हार के बाद पुनः खड़े होने की हिम्मत दी हौसला दिया ...  आज उसी के बदले अफगानिस्तान से लेकर हिंदुस्तान तक भाटियों के निशान जिंदा है ... शान जिंदा है ... क्यों जिंदा है क्योंकि भाटियों की माताओं ने अग्नि में राख होना स्वीकारा और भाटियों ने रण में रक्त बहाना ... सत्ता से बड़ा जिनके लिए सम्मान था ...धरा पर उनका ही जयगान था ... गजनी छुटी लाहौर छूटा ... भटनेर छूटी तणोट छुटा ... देरावर और लोद्रवा भी छूटा लेकिन नही छुटा तो हमारा #धर्म ... हमारी #ध्वजा और कमर में बंधी #कटार ... जिसकी बदौलत आठ सौ सालों से जैसाण जिंदा है ... भाटी वंश जिंदा है  ... यदुवंश जिंदा है ... चंद्रवंश जिंदा है और आगे भी रहेगा ... जिस वंश में श्री कृष्ण - गज - शालिवाहन - राजा भाटी - केहर - राव तणू - विजयराज चुडाला - देवराज - विजेराज लांझा - रावल भोजदेव - रावल जैसल - रावल चाचकदेव - रावल जेतसिंह - युवराज मूलराज - रतनसी -  राव केलण - दूदा - तिलोकसी - रावल घड़सी - रावल लूणकरण - युवराज मालदेव - वीरवर आला जी - महारावल अमरसिंह - महारावल गिरधरसिंह जैसे सपूत जन्में है ... जिन पर माँ स्वांगिया की छत्रछाया औऱ डाडे कृष्ण का आशीर्वाद है उनकी जय जय कार सदियों हुई है और सदियों होती रहेगी ... 


जय श्री कृष्ण 

जय जैसाण

आजकल के कुछ फर्जी इतिहासकारो द्वारा ऐसी भ्रामक जानकारी प्रचारित करके लाटेचा राजपुत सरदारो के स्वाभिमानी इतिहास को धूमिल किया जा रहा है

 विशेष निवेदन 

आजकल के कुछ फर्जी इतिहासकारो द्वारा ऐसी भ्रामक जानकारी प्रचारित करके लाटेचा राजपुत सरदारो के स्वाभिमानी इतिहास को धूमिल किया जा रहा है


कुछ लोग सुनी सुनाई बातों के आधार पर क्षत्रिय घाँची जाति का संस्थापक कुमारपाल को बताते हैं लेकिन यह बात आधारहीन हैं इसके कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं,

पहली बात तो यह कि क्षत्रिय घाँची पहले भी क्षत्रिय ही थे क्योंकि क्षत्रियत्व तो उत्तपत्ति से ही रक्त के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलता जाता हैं, उन्होंने केवल राजपूती रितिवाज और खानपान को त्याग कर क्षत्रिय राजपूत से क्षत्रिय घाँची होना अंगीकार किया था,

दूसरी बात यह कि संवत 1191 में ही तेल निकालने वाले सरदार ढाल तलवार त्याग कर घाणी अपना कर घाँची बन कर पाटण को छोड़ चुके थे, कुमारपाल उस समय से वर्षों पहले पाटण से भाग कर सिद्धराज जयसिंग सोलंकी से जान बचा कर कभी खंभात, कभी बड़ोदा, कोल्हापुर, कोंकण के जैन देरासरो में जैन साधुओं के बीच छिपकर रह रहा था, जब संवत 1199 में सिद्धराज जयसिंह की मृत्यु हुई तब कुमारपाल मालवा के जैन देरासर में छिपा हुआ था, जयसिंह की मृत्यु के पश्चात ही वो पुनः पाटण आया था, उस समय उसने जैन मुनि हेमचन्द्र की मदद और अपने बहनोई कान्हादेव की सेना की मदद से जयसिंह के घोषित उत्तराधिकारी को मारकर पाटण का राज्य प्राप्त किया था, जब तेल निकालने वाले सरदार संवत 1191में ही पाटण त्याग चुके थे तो 1199 में राजा बनने वाला कुमारपाल उनका संस्थापक कैसे हो सकता हैं?

कुछ लोग यह बात करते हैं कि कुमारपाल भी घाँची सरदार जो तेल निकालने को राजी हुए थे उनके साथ वो भी तेल निकालता था, तो यह बात असत्य हैं तेल निकालने के काम में राजकुमार कीर्तिपाल लगा हुआ था ना कि कुमारपाल ( संदर्भ पुस्तक श्री क्षत्रिय घाँची इतिहास पेज 19)

कुमारपाल, कीर्तिपाल और महीपाल ये तीनों राजा सिद्धराज जयसिंह सोलंकी के पिता राजा कर्ण के सौतेले भाई त्रिभुवनपाल के पुत्र थे, जयसिंह के कोई पुत्र नहीं था फिर भी वो अपने इन सौतेले भाइयों को अपना उत्तराधिकारी नहीं बनाना चाहता था क्योंकि उसका सोचना था कि इन तीनों की दादी भीमदेव प्रथम की दूसरी पत्नी बकुलादेवी क्षत्राणी न होकर एक नर्तकी वेश्या थी और सिद्धराज जयसिंग सोलंकी नहीं चाहते थे कि उनके उस समय के विशाल वैभवशाली साम्राज्य का उत्तराधिकारी किसी नृतकी का रक्त वाहक बने, लेकिन जब उस समय उनके दरबारी जैन मुनि हेमचन्द्र ने राजा को यह भविष्यवाणी सुना दी कि एक दिन कुमारपाल पाटण का राजा बनेगा तो जयसिंह किसी भी तरीके से अपने राज्य को एक नृतकी के पौत्र के हाथों जाने से बचाने के लिए कुमारपाल को जान से मारने की जुगत में लग गए, उसकी भनक मिलते ही कुमारपाल पाटण से गायब होकर जैन देरासरो में चला गया था, 

कुछ सुनी सुनाई बाते हैं कि कुमारपाल घाँची बने सरदारो के साथ मारवाड़ राज्य के पाली में आया था और फिर यहाँ से राजा बनने पाटण चला गया था, यह बात भी तथ्यों से परे हैं, जिसका सन्दर्भ यह दोहा हैं जिसमें उस समय पाटण त्याग गादोतरा गाड़कर आने वाले 8 गोत्र के 173 क्षत्रीय सरदारों के कुटुंब प्रमुख के नाम मिलते हैं

दोहा (संदर्भ पुस्तक श्री क्षत्रिय घाँची इतिहास पेज 67)

प्रथम राघो परमार गेलोत जाँझो गणिजे।

बोराणों लखराज भाटी वेलो भणिजे।।

चाँवण सतलसी सोलंकी खीमो सवाई।

राठोड़ो वीर धवल पुत्री चुमालिस परणाई ।।

पडिहार राण पदमसिंह वडम आण वधारिया ।

कवित आण भाट डूंगर कहे सुरफल जलम सुधारिया ।।

इस दोहे में कहीं भी सोलंकी कुमारपाल का जिक्र नही हैं जबकि सोलंकी में खीमो जी नाम हैं दूसरी बात यह मान भी लें की साथ आकर वो वापिस पाटण चला गया तो फिर गादोतरा का प्रण तोड़ कर वापिस जाने वाला संस्थापक कैसे हो सकता हैं

इस वर्णन में जिन पुस्तकों से जानकारी ली गई हैं

वो इस तरह से है

श्री क्षत्रिय घाँची संक्षिप्त इतिहास 

मुहथा नैंसी री ख्यात

सिद्धराज सोलंकी चरित्र

कुमारपाल

क्षत्रियवंशी लाटेचा राजपुत घाँची समाज की बहन बेटियां इसको पढ़कर अवश्य गौर करे

 क्षत्रियवंशी घाँची समाज की बहन बेटियां इसको पढ़कर अवश्य गौर करे - कि आजकल फ़ैशन चल पड़ा है  छोटे छोटे कपड़े पहनकर अंग प्रदर्शन का  क्या इसकी आवश्यकता है ? कि आपको ऐसे अंग प्रदर्शन व नग्नता करनी पड़े ? अगर है तो किस वजह से ? 




आजकल इंस्टाग्राम यूट्यूब पर लड़कियां बहने लाइव वीडियो बनाती है जिसको वो अपनी कला के नाम पर नग्नता परोसती है इन यूट्यूब चैनलो पर व इंस्टाग्राम रील्स में वही लड़की ज्यादा फेमस होती है जो ज्यादा अपने शरीर को नंगे रूप में दिखाती है जो जितने कम कपडे पहनेगी अपने चचहरे बदन की कसावट दिखाएगी उसके ज्यादा लाइक व्यू व कमेंट आएंगे अगर ऐसे नग्नता से पैसे ही कमाने है तो फिर इन इंस्टाग्राम यूट्यूब पर नंगी नाचने वाली व उन कोठे के वेश्याओं में क्या फर्क रह जाता है 



आजकल इन यूट्यूब व इंस्टाग्राम फ़ेसबुक पर शादीशुदा अधेड़ उम्र की महिलाएं , भाभियां भी पीछे नही रहती है यह भी उन फिल्मी भाँडो के देखा देखी में अपने शरीर के नग्नता परोसने पर उतर ही जाती है देर सवेर , अब इन अधेड़ उम्र की माताओ व भाभियों को कौन समझाए कल वही वीडियो को तुम्हारी औलाद देखेगी बड़ी होकर व तुम्हारे बाप दादा आदि भी देखकर अपनी आँखों मे शर्म के मारे मर जायेंगे जिन वीडियो में तुम अपने चचहरे बदन को कसे कपड़ो में जकड़कर अपने कूल्हे मटकाती  हो ताकि व्यू व लाइक कमेंट ज्यादा आये या शायद ज्यादा पैसे यूट्यूब एडसेंस से मिल जाये 



#लड़कियो के नग्न घूमने पर जो लोग या स्त्रीया ये कहती है की #कपडे नहीं सोच बदलो..उन लोगो से मेरे कुछ प्रश्न है ??? 1-हम #सोच क्यों बदले??

सोच बदलने की नौबत आखिर आ ही क्यों रही है??? आपने लोगो की सोच का #ठेका लिया है क्या??


2) आप उन लड़कियो की सोच का #आकलन क्यों नहीं करते??

उसने क्या सोचकर ऐसे कपडे पहने की उसके स्तन पीठ जांघे इत्यादि सब दिखाई दे रहा है....

इन कपड़ो के पीछे उसकी सोच क्या थी??

एक #निर्लज्ज लड़की चाहती है की पूरा पुरुष समाज उसे देखे,वही एक सभ्य लड़की बिलकुल पसंद नहीं करेगी की कोई उस देखे ।


3) अगर सोच बदलना ही है तो क्यों न हर बात को लेकर बदली जाए???

आपको कोई अपनी बीच वाली ऊँगली का इशारा करे तो आप उसे गलत मत मानिए......

सोच बदलिये..

वैसे भी ऊँगली में तो कोई बुराई नहीं होती....

आपको कोई गाली बके तो उसे गाली मत मानिए...

उसे प्रेम सूचक शब्द समझिये.....

हत्या ,डकैती, चोरी, बलात्कार, आतंकवाद इत्यादि सबको लेकर सोच बदली जाये...

सिर्फ नग्नता को लेकर ही क्यों????


4) कुछ लड़किया कहती है कि हम क्या पहनेगे ये हम तय करेंगे....

पुरुष नहीं.....

जी बहुत अच्छी बात है.....

आप ही तय करे....


लेकिन हम पुरुष भी किस लड़की का सम्मान/मदद करेंगे ये भी हम तय करेंगे, स्त्रीया नहीं....

और हम किसी का सम्मान नहीं करेंगे इसका अर्थ ये नहीं कि हम उसका अपमान करेंगे


5) फिर कुछ विवेकहीन लड़किया कहती है कि हमें आज़ादी है अपनी ज़िन्दगी जीने की.....

जी बिल्कुल आज़ादी है, ऐसी आज़ादी सबको मिले, व्यक्ति को चरस, गांजा, ड्रग्स, ब्राउन शुगर लेने की आज़ादी हो, गाय भैंस का मांस खाने की आज़ादी हो, वैश्यालय खोलने की आज़ादी हो, पोर्न फ़िल्म बनाने की आज़ादी हो...

हर तरफ से व्यक्ति को आज़ादी हो ।


6) लड़को को संस्कारो का पाठ पढ़ाने वाला कुंठित स्त्री समुदाय क्या इस बात का उत्तर देगा की क्या भारतीय परम्परा में ये बात शोभा देती है की एक लड़की अपने भाई या पिता के आगे अपने निजी अंगो का प्रदर्शन बेशर्मी से करे???

क्या ये लड़किया पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से देखती है ???

जब ये खुद पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से नहीं देखती तो फिर खुद किस अधिकार से ये कहती है की "हमें माँ/बहन की नज़र से देखो" ?

कौन सी माँ बहन अपने भाई बेटे के आगे नंगी होती है???

भारत में तो ऐसा कभी नहीं होता था....

सत्य ये है कीअश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधो की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दूकान है।।और इसका उत्पादन स्त्री समुदाय करता है।

मष्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशो में एक नशा अश्लीलता(वासना ) भी है।

चाणक्य ने चाणक्य सूत्र में यौनवासना/संभोग को सबसे बड़ा नशा और बीमारी बताया है।।

अगर ये नग्नता आधुनिकता का प्रतीक है तो फिर पूरा नग्न होकर स्त्रीया अत्याधुनिकता का परिचय क्यों नहीं देती????

गली गली और हर मोहल्ले में जिस तरह शराब की दुकान खोल देने पर बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है उसी तरह अश्लीलता समाज में यौन अपराधो को जन्म देती है।।

#पहनावा..सिर्फ चित्र नही #चरित्र भी तय करता है..

जिस प्रकार एक #पुरुषकाशरीर उसकी पत्नी के लिए होता है ठीक उसी प्रकार एक #स्त्रीकायोवन सिर्फ़ उसके पति के लिए होता है।


और इसका उदाहरण भी समय-समय पर हमारी वीर क्षत्राणियों व पराक्रमी क्षत्रिय पुरूषों ने पेश किया है फिर वो चाहे माता पद्मनी का जौहर हो या हाड़ी रानी का त्याग हो,


लेकिन देखा जा रहा है कि कुछ कुलहीन महिलाओं व चांडाल परवर्ती के पुरूष द्वारा हमारी इस सांस्कृतिक जीवन धरोहर पर कुठाराघात करने के प्रयत्न किए जा रहे हैं और दुख तो तब होता है जब हमारी कुछ हिन्दू महिलाएं भी इन दुष्टो की कुचाल का शिकार हो जाती हैं।


याद रहे स्त्री वहीं है जो अपने बदन को दिखाने के बजाए मर्यादित वस्त्रों को पहन अपने कुल की गरिमा को बनाए रखें, अन्यथा अंग प्रदर्शन तो कुत्ते बिल्लियाँ भी कर लेते हैं। 


याद रखें कि हम इंसान हैं जानवर नहीं। हिन्दू लड़कियाँ /महिलायें जितना अधिक शरीर दिखाना चाह रही, मुस्लिम महिलायें उतना ही अधिक पहनावे के प्रति कठोर होते जा रही।


पहले पुरुष साधारण या कम कपड़े पहनते थे, और नारी सौम्यता पूर्वक अधिक कपड़े पहनती थी, पर अब टीवी सीरियलों, फिल्मों की चपेट में आकर हिन्दू नारी के आधे कपड़े स्वयं को Modern बनने में उतर चुके हैं।


यूरोप द्वारा प्रचारित #नंगेपन के षडयंत्र की सबसे आसान शिकार, भारत की मॉडर्न हिन्दू महिलाए है, जो फैशन के नाम पर खुद को नंगा करने के प्रति वेहद गंभीर है, पर उन्हें यह ज्ञात नहीं कि वो जिसकी नकल कर इस रास्ते पर चल पड़ी है, उनको इस नंगापन के लिए विज्ञापनों में करोड़ो डॉलर मिलते है। उन्हें कपड़े ना पहनने के पैसे मिलते हैं। 


पहनावे में यह बदलाव ना पारसी महिलाओं में आया ना मुस्लिम महिलाओं में आया, यह बदलाव सिर्फ और सिर्फ #हिंदू_महिलाओं में ही क्यों आया है?? जरा इस पर विचार कीजियेगा।


क्योंकि..- अगर कम कपड़े पहनना ही मॉडर्न होना है 

तो जानवर इसमें आप से बहुत आगे हैं- स्वामी विवेकानन्द जी🙏🙏🙏


यह पोस्ट केवल हमारी बहु, बेटियों, माताओं, बहनों को यूरोप द्वारा प्रचारित नंगेपन के षडयंत्र का शिकार बननें से रोकने के लिए है, यदि इस पोस्ट को आप अपनें बहनों, बेटियों से शेयर करें तो हो सकता है, हमारा आनें वाला समाज प्रगति की ओर तत्पर हो,

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अगर फिर भी इस लेख से हमारे कारण किसी का दिल  दुखे तो हम आप सबके क्षमाप्रार्थी है।



जय माँ भवानी

Tuesday, May 12, 2020

क्षत्रिय लाठेचा समाज स्थापना दिवस



क्षत्रिय घाँची समाज स्थापना दिवस


Friday, January 31, 2020

लाठेचा क्षत्रिय