भाटी वंश परम्परा एवं इतिहास ..
#भाटीवंशपरम्पराएवंइतिहास .....
सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा के पुत्र अत्रि और अत्रि के पुत्र चंद्र ... इन्ही चन्द्र से #चंद्रवंश का उदय हुआ ... चन्द्र के बुध और बुध के पुरुरवा ... पुरुरवा की ही पीढ़ी में ययाति हुए ... ययाति के पुत्र हुए यदु ... यदु से ही #यदुवंश चला ... यदु के शूरसेन और शूरसेन के वासुदेव और वासुदेव के हुए #श्रीकृष्ण ... प्रभु श्री कृष्ण से ही यदुवंश की ख्याति हर और बढ़ी एवं यदुवंशी कृष्ण पुत्र कहलाए ...कृष्ण ही यदुवंशियों के इष्ट देव है ... यदुवंश से ही गुजरात के #जाडेजा #चुडासमा #रायजादा और #सरवैया राजपुतों का निकास है ... #करौली के जादोनों और #देवगिरी के यादवों का भी निकास यही से माना गया है ... यही यादव आगे चल कर #जाधव कहलाए ... शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई इन्ही जाधावों की बेटी थी ... दक्षिण भारत के भी कुछ प्रमुख राजवंशों का निकास यदुवंशियों से माना गया है ... यदुवंश की जो शाखा भारत के उत्तर - पश्चिम में रही उनमें श्री कृष्ण से बारह पीढ़ी बाद गजबाहु हुए जिन्होंने #गजनी शहर बसाया और वहाँ राज किया ... इन्ही के वंशजों ने #लाहौर को अपनी राजधानी बनाया ... लाहौर का भाटी दरवाजा आज भी पाकिस्तान में भाटियों के गौरव में खड़ा है ... अफगानिस्तान और पंजाब के क्षेत्र में लंबे समय तक इनका राज रहा ... इन्ही में आगे चल कर #शालिवाहनप्रथम हुए उनका साम्राज्य विस्तृत भूभाग में फैला था ... इन्ही के पुत्र #बालबन्ध हुए और बालबन्ध के घर ही #भाटी का जन्म हुआ जो आगे चल कर राजा भाटी कहलाए ... लाहौर के राजा भाटी से ही क्षत्रियों की भाटी शाखा का प्रादुर्भाव हुआ ... राजा भाटी ने #भटनेर बसाया ... राजा केहर ने #केहरोरगढ़ और अपने पुत्र तणु के नाम से #तणोट बसाया और तणोट गढ़ की नींव #माँआवड़ के हाथ से दिलवाई ... तणोट में माँ आवड़ का प्राचीन मंदिर है ... आवड़ ही स्वांगिया है ... स्वांगिया माँ को भाटियों की कुलदेवी माना गया है ... राव तणु के बेटे #विजेरावचूंडाला को माँ स्वांगिया का इष्ट था ... वो बहुत ही बहादुर योद्धा था लेकिन शत्रुओं ने उसे षड्यंत्र से मार दिया और तणोट गढ़ ध्वस्त कर दिया ... #रावतणु भी लड़ते हुए काम आए ... विजेराव का पुत्र #देवराज उस समय छोटा था और पुष्करणा ब्राह्मणों के सहयोग से बच गया ... पुष्करणा भाटियों के राजपुरोहित है ...बाबा रतननाथ जी के आशीर्वाद से देवराज ने #देरावरगढ़ बनाया औऱ भाटियों की सत्ता पुनः स्थापित की ... इसी वंश में आगे चल कर #विजयराजलांजा हुआ जिसे " उत्तर भड़ किवाड़ भाटी " की उपाधि मिली ... जिसका अर्थ होता है " भारत के उत्तरी द्वार के रक्षक भाटी " जिसे भाटी सदियों से सिद्ध करते आए है ... विजयराज के पुत्र #भोजदेव ने चौदह साल की उम्र में गौरी की सेना से मुकाबला किया और वीरगति को प्राप्त हुआ ... भाटियों में कम आयु का यह महान राजा एवं योद्धा था ... भोजदेव के काका जैसलदेव ने #जैसलमेर की नींव रखी और त्रिकुट पहाड़ी पर एक मजबुत दुर्ग बनाया ... जैसलदेव के बाद #शालिवाहनद्वितीय रावल बना शालिवाहन के ही बेटों पोतों ने पंजाब में पटियाला - कपूरथाला - जींद - नाभा - फरीदकोट की रियासतें कायम की ... हिमालय की पहाड़ियों में सिरमोर - नाहन रियासत की स्थापना भी शालिवाहन के ही परिवार ने की ... शालिवाहन के बाद #रावलचाचगदेव हुए ... जिन्होंने उम्र के अंतिम पड़ाव में भी रण में मरणा महल में मरने से बेहतर माना और मुल्तान की सेना को हरा वीरगति को प्राप्त हुए ... चाचगदेव के बाद #रावलजैतसी जी प्रथम और उनके बेटे #मूलराज व #रतनसी ने भाटियों का मान बढ़ाया ... खिलजी की सेना ने गढ़ को घेर लिया ... क्षत्रिय रण में काम आए और माताओं ने अग्नि स्नान किया ... इसी परम्परा को उनके बाद के #रावलदुदा और #तिलोकसी ने कायम रखा और वीरोचित मार्ग से स्वर्ग सिधारे ... ततपश्चात #रावलघड़सी जी ने जैसलमेर पुनः प्राप्त किया और जैसाण का मान बढ़ाया ... घड़सी के बाद #रावललूणकरण हुए ... आपके समय में अमीर अली ने धोखे से गढ़ को हथियाने का प्रयास किया ... रावल लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए और रानियों ने धारा स्नान किया ... #मालदेव जो लूणकरण का पुत्र था #आलाजीभांणसीहोत के नेतृत्व में भाटियों की सेना भेजी और दुर्ग पुनः हासिल किया व शत्रुओं को दंड दिया ... महारावल अमर सिंह के समय #रोहड़ी पर बलोचों और चनों ने आक्रमण किया ... सीमा सुरक्षा चौकी पर तैनात भाटियों ने बहादुरी से उनका मुकाबला किया और वीरगति पाई ... क्षत्राणियों ने जौहर किया ... अमर सिंह जी ने रोहड़ी पुनः हासिल की बलोचों एवं चनों को मार भगाया ... जब भाटी राजवंश देश की आजादी के मुहाने पर खड़ा था तब #महारावलगिरधरसिंह जैसा सपूत राजा हुआ जिसने निज हित से प्रजा हित को बड़ा माना और भारत में सम्मिलित होने का निर्णय लिया ... भारत के उत्तरी द्वार के रक्षकों ने पुनः भारत को मजबूती दी ... वर्तमान महारावल चैतन्य राज सिंह जी है जो महारावल ब्रजराज सिंह जी के पुत्र है ... चन्द्र से शुरू हुआ यह सफर जो यदु और भाटी से होता हुआ चैतन्य राज तक पहुँचा जो गौरव पूर्ण और उज्ज्वल है ... इस उज्ज्वल और गौरव पूर्ण सफर में उन अनगिनत योद्धाओं का त्याग तप और बलिदान छुपा है जो जिये भी वंश के लिए और मरे भी वंश की खातिर ... जिनमें से कुछ नाम हमें याद है और बहुत से गुमनाम भी ... वर्तमान में भाटियों की एक सौ साठ के लगभग शाखाएं एवं उप शाखाएं है जो कुछ तो इतिहास की पुस्तकों में दर्ज है और कुछ अभी केवल बोल चाल में ही प्रयोग होती है ... जैसलमेर रियासत में भाटियों के बहुत से गांव एवं ठिकाणे है ... जैसलमेर से बाहर राजस्थान के अन्य जिलों में भी भाटियों के बहुत से ओहदेदार ठिकाणे एवं गांव है ... गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड , दिल्ली और हरियाणा में भाटियों के बहुत से ठिकाणे और गांव है ... पंजाब और हिमाचल में कुछ रियासतों के साथ बहुत से गांव एवं ठिकाणे है ... भाटियों का फैलाव भाटियों के साहस - संघर्ष और विशाल वंश व्रक्ष की और इशारा करता है ... जो सभी यदुवंशियों और भाटियों के लिए गौरव की बात है
काशी मथुरा प्रयागबड़ गजनी अर भटनेर ...
दिगम दिरावर लुद्रवो नौवोँ जैसलमेर ...
काशी से शुरू हुई यह यात्रा गजनी तक गई और जैसलमेर पहुँची ... कई जुंझार इसे आगे भी ले गए ... भाटियों ने कई विशाल साम्राज्य जीते और हारे भी लेकिन नही हारी तो भाटियों की हिम्मत ... जिसने उन्हें हर हार के बाद पुनः खड़े होने की हिम्मत दी हौसला दिया ... आज उसी के बदले अफगानिस्तान से लेकर हिंदुस्तान तक भाटियों के निशान जिंदा है ... शान जिंदा है ... क्यों जिंदा है क्योंकि भाटियों की माताओं ने अग्नि में राख होना स्वीकारा और भाटियों ने रण में रक्त बहाना ... सत्ता से बड़ा जिनके लिए सम्मान था ...धरा पर उनका ही जयगान था ... गजनी छुटी लाहौर छूटा ... भटनेर छूटी तणोट छुटा ... देरावर और लोद्रवा भी छूटा लेकिन नही छुटा तो हमारा #धर्म ... हमारी #ध्वजा और कमर में बंधी #कटार ... जिसकी बदौलत आठ सौ सालों से जैसाण जिंदा है ... भाटी वंश जिंदा है ... यदुवंश जिंदा है ... चंद्रवंश जिंदा है और आगे भी रहेगा ... जिस वंश में श्री कृष्ण - गज - शालिवाहन - राजा भाटी - केहर - राव तणू - विजयराज चुडाला - देवराज - विजेराज लांझा - रावल भोजदेव - रावल जैसल - रावल चाचकदेव - रावल जेतसिंह - युवराज मूलराज - रतनसी - राव केलण - दूदा - तिलोकसी - रावल घड़सी - रावल लूणकरण - युवराज मालदेव - वीरवर आला जी - महारावल अमरसिंह - महारावल गिरधरसिंह जैसे सपूत जन्में है ... जिन पर माँ स्वांगिया की छत्रछाया औऱ डाडे कृष्ण का आशीर्वाद है उनकी जय जय कार सदियों हुई है और सदियों होती रहेगी ...
जय श्री कृष्ण
जय जैसाण