क्षत्रिय घाँची /लाठेचा सरदार समाज का इतिहास
क्षत्रिय घाँची एक क्षत्रिय जाति है, ये लोग गुजरात के पाटण के राजा सिद्धिराज "राजा जयसिंह सौलंकी" के वंशज है और उनके रिश्तेदार को ही वर्तमान मे क्षत्रिय(घाँची) जाति से पहचाना जाता है व क्षत्रिय(घाँची) समाज के संस्थापक राजा जयसिंह के भतीजे कुमारपाल सिंह व उनके साथी वेलसिंह भाटी के नेतृत्व मे 189 क्षत्रिय राजपूत सरदार जो कि 14 क्षत्रिय गोत्र के चौहान,रणबंका राठौड़ ,जस्सा भाटी,सौलंकी, प्रतिहार परिहार, परमार,पंवार,देवड़ा, बोराणा,व गेहलोत जो की जिन्होंने परमार वंश की रियासत आबू में आकर अपने समाज के कायदा कानुन बनाए व क्षत्रिय राजकुल गुरुओ द्वारा हवन करके समाज मे मॉस व मध(शराब) को पूर्ण प्रतिबंधित किया तथा क्षत्रिय(घाँची)समाज के औरतो का पहनावा पूर्ण रजपूती पहनावा है इनमें महिलाएं आज भी राजस्थान के राजपूतो की तरह नाक में बाली व हाथ मे चूड़ा पहनती है क्षत्रिय(घाँची) जाति का पहनावा गुजरात व राजस्थान के राजपूतो के समान मिश्रीत पहनावा है राजस्थान के तीन संभागों मे फेल गये जिनमें जोधपुर संभाग,पाली संभाग, जालोर संभाग, है व इन संभागों के ही शहरों व गाँवो में जो कि सुमेरपुर,सिरोही, बालोतरा संभागों में फैल गये क्षत्रिय(घाँची)जाति राजस्थान के इन तीन संभागों में ही रहती है और कही भी क्षत्रिय(घाँची) जाति की कोई शाखा नही है क्षत्रिय(घाँची) क्षत्रिय वर्ण की जाति है जिसका जाति नाम भी क्षत्रिय ही है यह जाति 11वी शताब्दी मै अपने क्षत्रिय स्वाभिमान व आन-बान और शान के लिये अपनी मातृभूमि छोड़कर राजस्थान आगये पर अपनी क्षत्रिय जातिगत पहचान को वर्तमान में भी बनाये हुए है क्षत्रिय(घाँची)समाज क्षत्रिय जाति होने के कारण आज भी अपनी जाति क्षत्रिय(घाँची) लिखते है वर्तमान मे केवल राजपूत जाति व क्षत्रिय(घाँची) ही अपने आप को क्षत्रिय जातिया बताती है क्षत्रिय(घाँची) जाति ने समय के अनुसार क्षत्रिय से राजपूत लिखना शरू किया था 11वी शताब्दी में राजपूत शब्द पर प्रचलित कम था व गुजरात की क्षत्रिय जाति होने के कारण क्षत्रिय राजपुत घाँची नाम ही रखा व इसमे कोई परिवर्तन नही किया क्योंकि यह गुजरात की क्षत्रिय जाति थी अगर क्षत्रिय(घाँची) जाति के सरदार अपनी मातृभूमि नही त्यागते तो राजपुत घाँची होते हुए भी वर्तमान में वे कही सारी जागीरों के मालिक व ठाकुर होते
वर्तमान में क्षत्रिय(घाँची) समाज के लोग अपनी क्षत्रिय राजपुत पहचान को खो रहे है और अपनी जाति पूरी यानि क्षत्रिय(घाँची) नही लिखते है और सामान जाति शब्द नाम होने कि गलतफहमी के कारण क्षत्रिय(घाँची) समाज के लोग अपने नाम के पीछे मोदी लिखने लगे जो की बिल्कुल गलत है क्योंकि हमारे क्षत्रिय समाज में मोदी नाम की कोई गोत्र या जाति नही है फिर हम मोदी क्यों लिखे ! गलतफहमी का मुख्य कारण यही है कि हम क्षत्रिय(घाँची) लिखते है ओर घाँची हमारे समाज के सरदारो को उपाधि दी गयी थी जबकि मोदी हो की साहू जाति है लेकिन उनकी जाति मे भी घाँची शब्द होने के कारण हमारे समाज के लोग नरेंद मोदी की तरह फेमस होने के चक्कर व राजस्थान के क्षत्रिय(घाँची) जो गुजरात मे व्यापार करने जाते है वो अपनी जाति पहचान नही बता पाते है तो वे दोनों जातियो मे घाँची शब्द समान होने के कारण अपनी पहचान आसान बताने के लिए अपनी पहचान मोदी बता देते है जो कि उनकी कमजोरी है कि वे अपनी क्षत्रिय(घाँची) पहचान नही बता पाते है और क्षत्रिय से तेली पहचान बता देते है जो कि क्षत्रियो को शोभा नही देता अपनी क्षत्रिय राजपुत पहचान को कायम रखे व हमे अपने क्षत्रियराजपुत होने का प्रमाण देने की आवश्यकता नही है क्योंकि हमारे समाज के महापुरुषों का एक ही वाक्य था कि हम ढाल व तलवारे सिर्फ रख रहे है चलाना नही भूले है तथा मातृभूमि त्याग रहे है पर हमारी धमनियों मे रक्त हमेसा रजपूती दौड़ेगा
जय क्षत्रिय(घाँची)समाज
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https://hi.m.wikipedia.org/wiki/घाची